गेंदा की खेती ने बदली किस्मत: झारखंड के किसान मानिक महतो बने प्रेरणा, पारंपरिक खेती छोड़ फूलों से कमा रहे अच्छा मुनाफा

गेंदा की खेती ने बदली किस्मत: झारखंड के किसान मानिक महतो बने प्रेरणा, पारंपरिक खेती छोड़ फूलों से कमा रहे अच्छा मुनाफा
झारखंड के चाकुलिया प्रखंड के मालकुंडी पंचायत स्थित बालीदुमा गांव के किसान मानिक महतो ने पारंपरिक खेती की सीमाओं को पीछे छोड़ते हुए गेंदा फूल की खेती से अपनी आर्थिक स्थिति में जबरदस्त सुधार किया है। महतो अब उन किसानों के लिए मिसाल बन चुके हैं जो लंबे समय से धान और गेहूं जैसी पारंपरिक फसलों में सीमित आय की वजह से परेशान हैं।
मानिक महतो की शुरुआत बेहद सामान्य रही। वे पहले की तरह धान और गेहूं उगाते थे, लेकिन धीरे-धीरे उन्हें समझ आया कि इससे उनका परिवार आर्थिक रूप से सशक्त नहीं हो पा रहा है। लगातार घाटे और सीमित लाभ के चलते उन्होंने खेती का तरीका बदलने का फैसला किया और गेंदा फूल की खेती शुरू की। यह निर्णय उनके जीवन के लिए एक बड़ा मोड़ साबित हुआ।
पिछले दो वर्षों से मानिक महतो 10 कट्ठा ज़मीन पर गेंदा फूल की खेती कर रहे हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार, उन्होंने इस जमीन पर खेती के लिए करीब 8,000 रुपये का निवेश किया, जिसमें बीज, खाद और देखभाल की लागत शामिल थी। सिर्फ तीन महीनों में उन्हें इस खेती से 25,000 रुपये से अधिक का मुनाफा हुआ। इस वर्ष उन्हें इससे भी अधिक लाभ की उम्मीद है, क्योंकि उन्होंने पहले की तुलना में बेहतर देखभाल और जैविक खाद का इस्तेमाल किया है।
गेंदा फूल के बीज उन्होंने पश्चिम बंगाल के पांशकुड़ा से मंगवाए थे और रोपण करते समय पौधों के बीच 22 इंच की दूरी रखी। उन्होंने अपनी खेती में रासायनिक खाद की जगह जैविक खाद का उपयोग किया, जिससे फूलों की गुणवत्ता बेहतर हुई और बाजार में मांग भी बढ़ी।
गेंदा फूल की खेती घाटशिल अनुमंडल क्षेत्र में लाभकारी मानी जाती है। यहां गेंदा फूल की कीमत 50 से 60 रुपये प्रति किलोग्राम तक जाती है, जो किसानों के लिए अच्छा मूल्य है। यह फूल धार्मिक अनुष्ठानों, सजावट और त्योहारों में बड़े पैमाने पर इस्तेमाल होता है, जिससे इसकी मांग साल भर बनी रहती है।
गेंदा फूल की खेती कम लागत, कम समय और उच्च लाभ देने वाली कृषि प्रणाली बनकर उभर रही है। इस फूल की खेती के लिए ऐसी मिट्टी सर्वोत्तम होती है जिसमें जल निकासी अच्छी हो और उसका पीएच स्तर 6.5 से 7.5 के बीच हो। खास बात यह है कि गेंदा की बुवाई साल में कभी भी की जा सकती है, जिससे किसान को लचीलापन और स्थायी आमदनी का विकल्प मिलता है।
मानिक महतो की सफलता यह दर्शाती है कि अगर किसान पारंपरिक सोच से हटकर थोड़ी हिम्मत और योजना के साथ खेती करें, तो वे न केवल अपनी आर्थिक स्थिति सुधार सकते हैं बल्कि दूसरों के लिए प्रेरणा स्रोत भी बन सकते हैं। फूलों की खेती खासकर गेंदा जैसी फसलों में बढ़ती मांग और अच्छे बाजार मूल्य को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि यह झारखंड जैसे राज्यों में स्वरोजगार और समृद्धि का नया रास्ता बन सकती है।