• April 26, 2025

Gujarat: गुजरात के बुजुर्ग दंपति ने रचा प्रकृति से जुड़ाव का अनोखा उदाहरण

 Gujarat: गुजरात के बुजुर्ग दंपति ने रचा प्रकृति से जुड़ाव का अनोखा उदाहरण
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Gujarat: गुजरात के बुजुर्ग दंपति ने रचा प्रकृति से जुड़ाव का अनोखा उदाहरण

गुजरात के शंखेश्वर क्षेत्र के धनोरा गांव में रहने वाले बुजुर्ग दंपति दिनेश चंद्र और देविंद्रा ठाकर ने अपने रिटायरमेंट जीवन को एक सामान्य आरामदायक जीवन के बजाय प्रकृति के नाम समर्पित कर दिया है। अपने जीवन की संध्या वेला को उन्होंने केवल निजी सुख-सुविधाओं में नहीं बिताया, बल्कि अपने घर को प्रकृति के संरक्षण का एक जीवंत उदाहरण बना डाला। उनका घर अब एक ऐसा स्थल बन चुका है जहां जैव विविधता, हरियाली और सतत जीवनशैली का आदर्श रूप देखने को मिलता है।

दिनेश चंद्र और देविंद्रा ठाकर का यह सफर तब शुरू हुआ जब उन्होंने रिटायरमेंट के बाद अपने गांव लौटकर पर्यावरण के लिए कुछ सार्थक करने की ठानी। उन्होंने महसूस किया कि प्रकृति के बिगड़ते संतुलन के लिए केवल सरकारों को जिम्मेदार ठहराना उचित नहीं है, बल्कि हर नागरिक को अपनी भूमिका निभानी चाहिए। इसी सोच के साथ उन्होंने अपने आवासीय परिसर को एक छोटे जंगल में बदलने की ठान ली।

आज उनका घर आम, नीम, पीपल, बरगद, तुलसी और अन्य औषधीय पौधों से सजा है। इन पेड़ों के बीच रंग-बिरंगी तितलियां उड़ती हैं, पंछियों का कलरव गूंजता है और छोटे जीव-जंतु निर्भय होकर विचरण करते हैं। यह दृश्य न केवल मन को सुकून देता है, बल्कि एक मजबूत संदेश भी देता है कि मानव और प्रकृति साथ-साथ रह सकते हैं।

उनकी जीवनशैली पूरी तरह सस्टेनेबल है। उन्होंने अपने घर की छतों पर सौर पैनल लगाए हैं जिससे बिजली की खपत को न्यूनतम किया गया है। वर्षा जल संचयन की व्यवस्था भी उनके यहां मौजूद है, जिससे पानी की एक-एक बूंद का सदुपयोग होता है। इसके अलावा, वे जैविक खेती में विश्वास रखते हैं और अपने बगीचे में उगाई गई सब्जियों में किसी भी प्रकार के रसायन का प्रयोग नहीं करते। वे प्लास्टिक से दूर रहते हैं और स्थानीय लोगों को भी इसके खतरों से अवगत कराते हैं।

इस बुजुर्ग दंपति की यह मेहनत आज केवल उनके परिवार तक सीमित नहीं है। उनके घर को देखने और प्रेरणा लेने के लिए दूर-दूर से पर्यावरण प्रेमी आते हैं। उनका यह संदेश लोगों के बीच गूंज रहा है कि “पर्यावरण की रक्षा केवल नीति नहीं, जीवनशैली का हिस्सा होनी चाहिए।”

दिनेश चंद्र और देविंद्रा ठाकर का ‘कुदरत का घर’ आज एक मिशन बन चुका है—ऐसा मिशन जो यह सिखाता है कि रिटायरमेंट का मतलब निष्क्रियता नहीं, बल्कि समाज और प्रकृति के लिए नई जिम्मेदारी हो सकती है। यह दंपति अपने छोटे-से गांव से एक बड़ी लहर चला रहे हैं, जो आने वाली पीढ़ियों को न केवल एक हरा-भरा भविष्य दे सकती है, बल्कि यह भी सिखा सकती है कि प्रकृति के साथ तालमेल में ही असली सुख है।

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