• April 22, 2025

Ashwagandha: अश्वगंधा की खेती से लाखों की कमाई: जानिए कैसे एक बीघा से मिल रही है ₹2 लाख तक की नेट इनकम

 Ashwagandha: अश्वगंधा की खेती से लाखों की कमाई: जानिए कैसे एक बीघा से मिल रही है ₹2 लाख तक की नेट इनकम
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Ashwagandha: अश्वगंधा की खेती से लाखों की कमाई: जानिए कैसे एक बीघा से मिल रही है ₹2 लाख तक की नेट इनकम

देशभर में औषधीय फसलों की मांग तेजी से बढ़ रही है, और इसी में एक खास नाम है – अश्वगंधा। इस बहुपयोगी जड़ी-बूटी की खेती अब केवल आयुर्वेदिक कंपनियों तक सीमित नहीं रही, बल्कि छोटे और मझोले किसान भी इसे अपनाकर शानदार मुनाफा कमा रहे हैं। राजस्थान के झालावाड़ जिले के तितरवास गांव से किसान कमलेश कुमार धाकड़ द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, अश्वगंधा की एक बीघा खेती से नेट इनकम ₹2 लाख तक निकल रही है।

अश्वगंधा की मांग देशभर में बनी हुई है और इसकी बिक्री का प्रमुख केंद्र है – नीमच मंडी, जो कि मध्यप्रदेश के मंदसौर जिले में स्थित है। यहां पर हाइब्रिड अश्वगंधा की कीमत ₹30,000 से ₹36,000 प्रति क्विंटल तक पहुंच रही है, जबकि देसी किस्म की कीमत ₹150 प्रति किलो तक मिलती है।

उत्पादन क्षमता और इनकम का गणित

कमलेश कुमार के मुताबिक, अश्वगंधा की एक बीघा खेती से औसतन 3.5 से 5 क्विंटल शुष्क जड़ (ड्राई रूट्स) का उत्पादन हो जाता है। इसका बाजार भाव औसतन ₹30,000 से ₹32,000 प्रति क्विंटल रहता है। इस हिसाब से एक बीघा से ₹1 लाख से ₹1.5 लाख की इनकम आसानी से निकल जाती है। लेकिन यदि हाई क्वालिटी बीज और बेहतर प्रबंधन किया जाए, तो इनकम ₹2 लाख तक भी पहुंच सकती है।

बीज की जानकारी और कीमत

हाइब्रिड बीज की कीमत ₹1000 प्रति किलो है। एक बीघा में लगभग 10 किलो बीज की आवश्यकता होती है, जबकि एक एकड़ में 25 किलो और एक हेक्टेयर में लगभग 40 किलो बीज लगता है। इस प्रकार एक बीघा में बीज की लागत करीब ₹10,000 होती है, लेकिन यदि किसान खुद बीज उत्पादन भी करता है, तो एक बीघा से 1 क्विंटल बीज तक निकाला जा सकता है जिसकी कीमत ₹50,000 तक पहुंचती है।

खेती की चरणबद्ध विधि

  1. मिट्टी का चयन: काली, दोमट या रेतीली मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है।

  2. बीज की बुआई: जुलाई-अगस्त में 1–2 सेमी की गहराई पर बीज बोएं।

  3. पानी की व्यवस्था: सप्ताह में एक बार सिंचाई पर्याप्त होती है।

  4. निराई-गुड़ाई: समय-समय पर खरपतवार हटाते रहें।

  5. उर्वरक का उपयोग: नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश की मात्रा संतुलित होनी चाहिए।

  6. रोग और कीट नियंत्रण: आवश्यकता अनुसार कीटनाशक एवं फफूंदनाशक का छिड़काव करें।

  7. फसल की कटाई: बुआई के 4 से 5 महीने बाद कटाई करें।

  8. सुखाना और भंडारण: कटाई के बाद जड़ों को धूप में अच्छी तरह सुखाएं और सूखी, हवादार जगह पर संग्रहित करें।

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