• June 20, 2025

Success Story: पिता का सपना, बेटी की जीत: दिव्या कुमारी बनीं जज, बिहार की बेटियों के लिए बनीं मिसाल

 Success Story: पिता का सपना, बेटी की जीत: दिव्या कुमारी बनीं जज, बिहार की बेटियों के लिए बनीं मिसाल
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Success Story: पिता का सपना, बेटी की जीत: दिव्या कुमारी बनीं जज, बिहार की बेटियों के लिए बनीं मिसाल

बिहार के औरंगाबाद जिले की रहने वाली दिव्या कुमारी ने अपने पहले ही प्रयास में बिहार न्यायिक सेवा परीक्षा (PCS-J) पास कर न्यायिक पद हासिल कर लिया है। उनकी इस सफलता की कहानी केवल एक परीक्षा पास करने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक पिता के अधूरे सपने को पूरा करने, मां के समर्थन और खुद की मेहनत के बल पर असंभव को संभव बना देने की प्रेरणादायक गाथा है।

दिव्या के पिता विजय सिंह का सपना था कि उनकी बेटी जज बने। लेकिन वर्ष 2021 में कोरोना महामारी के दौरान उनका निधन हो गया। उस क्षण ने दिव्या की जिंदगी को हिला दिया, मगर उन्होंने हार मानने के बजाय उस दुख को अपने लक्ष्य का हिस्सा बना लिया। उन्होंने ठान लिया कि अपने पिता का सपना हर हाल में पूरा करना है, और उसी संकल्प के साथ पढ़ाई में जुट गईं।

दिव्या की प्रारंभिक शिक्षा औरंगाबाद के मिशन स्कूल में हुई। इसके बाद उन्होंने रांची से BALLB की पढ़ाई पूरी की और दिल्ली जाकर ज्यूडिशियरी की तैयारी शुरू कर दी। वर्ष 2022 में उन्होंने एक निजी कोचिंग संस्थान में दाखिला लिया और गहन अध्ययन के साथ एक साल की न्यायिक इंटर्नशिप भी की, जिससे उन्हें कानूनी प्रक्रियाओं की गहराई से समझ मिली।

इस दौरान उन्होंने सोशल मीडिया से पूरी तरह दूरी बनाकर खुद को केवल अध्ययन में समर्पित कर दिया। वह मानती हैं कि सोशल मीडिया आज के युवाओं का सबसे बड़ा ध्यान भटकाने वाला साधन है और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए इससे दूर रहना जरूरी है। दिव्या का सुझाव है कि जो छात्र जज बनना चाहते हैं, वे LLB की पढ़ाई के दौरान ही गंभीरता से तैयारी शुरू करें क्योंकि यही पांच साल की नींव भविष्य में निर्णायक बनती है।

दिव्या की मां ने उनके हर निर्णय में उनका साथ दिया। पिता की मौत के बाद घर की आर्थिक और मानसिक स्थिति को संभालना आसान नहीं था, लेकिन मां ने उन्हें कभी हिम्मत नहीं हारने दी। दिव्या बताती हैं कि जब उनके आसपास के लोग कह रहे थे कि अब आगे बढ़ना मुश्किल है, तब उनकी मां ने उन्हें ये भरोसा दिलाया कि वह कर सकती हैं और उन्हें करना ही है।

आज दिव्या ना सिर्फ अपने परिवार का गर्व बनी हैं, बल्कि पूरे बिहार की बेटियों के लिए एक प्रेरणा हैं। उनकी कहानी यह साबित करती है कि अगर इरादे मजबूत हों और मेहनत ईमानदारी से की जाए, तो कोई भी सपना अधूरा नहीं रहता। उन्होंने दिखा दिया कि परिस्थितियाँ चाहे कितनी भी विषम क्यों न हों, लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है।

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