• May 17, 2025

Ashwagandha Plant : एक बीघे में अश्वगंधा की खेती से कमाएं शानदार मुनाफा, जानिए पूरी प्रक्रिया

 Ashwagandha Plant : एक बीघे में अश्वगंधा की खेती से कमाएं शानदार मुनाफा, जानिए पूरी प्रक्रिया
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Ashwagandha Plant : एक बीघे में अश्वगंधा की खेती से कमाएं शानदार मुनाफा, जानिए पूरी प्रक्रिया

अगर आप खेती से अतिरिक्त आमदनी की तलाश में हैं और कम जोखिम में अच्छा लाभ कमाना चाहते हैं, तो अश्वगंधा की खेती आपके लिए एक बेहतरीन विकल्प साबित हो सकती है। आयुर्वेदिक औषधियों में बेहद महत्वपूर्ण मानी जाने वाली यह औषधीय फसल किसानों को प्रति बीघा शानदार इनकम देने की क्षमता रखती है। इसकी मांग देश और विदेश दोनों जगह बनी रहती है, जिससे यह फसल और भी लाभकारी हो जाती है।

अश्वगंधा को ‘विंटर चेरी’ और ‘इंडियन जिनसेंग’ के नाम से भी जाना जाता है। यह औषधीय पौधा तनाव, थकान, कमजोरी, अनिद्रा, और प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाने जैसी समस्याओं के इलाज में सहायक होता है। इसकी जड़ें सबसे अधिक उपयोग में लाई जाती हैं, जो आयुर्वेदिक दवाओं में खास भूमिका निभाती हैं।

अश्वगंधा की खेती करने के लिए सबसे पहले भूमि का सही चयन करना जरूरी होता है। इसे अच्छी जल निकासी वाली भूमि में उगाया जाना चाहिए। हालांकि यह लगभग हर प्रकार की मिट्टी में उग सकती है, लेकिन अच्छी पैदावार के लिए दोमट मिट्टी को सबसे उपयुक्त माना जाता है। भूमि की तैयारी करते समय खेत को अच्छी तरह से जोतें और खरपतवार से मुक्त करें।

बीज का चयन करते समय उन्नत किस्मों को वरीयता दें, जैसे कि पूसा अश्वगंधा या अन्य उच्च गुणवत्ता वाली हाइब्रिड किस्में। ये किस्में रोग प्रतिरोधक होती हैं और इनसे उत्पादन भी अधिक होता है। बुआई के लिए सबसे उपयुक्त समय अक्टूबर से नवंबर का होता है, जब तापमान 20-25 डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है।

बीजों को 1-2 सेंटीमीटर गहराई में और पौधों के बीच 10-15 सेंटीमीटर की दूरी पर बोना चाहिए। एक एकड़ क्षेत्र के लिए 5 से 6 किलो बीज की आवश्यकता होती है। सिंचाई की बात करें तो अधिक पानी से फसल को नुकसान हो सकता है, इसलिए 20-25 दिनों के अंतराल पर हल्की सिंचाई करें।

अश्वगंधा की फसल को अच्छे से बढ़ाने के लिए समय-समय पर निराई-गुड़ाई करनी चाहिए ताकि खरपतवारों का विकास न हो। उर्वरकों में गोबर की खाद का उपयोग करें, जो जैविक और पर्यावरण के लिए सुरक्षित होता है। इसके साथ-साथ प्रति एकड़ में 20-25 किलो नाइट्रोजन, 30-40 किलो फॉस्फोरस और 20-25 किलो पोटाश देना उपयुक्त होता है।

फसल को कीटों और रोगों से बचाने के लिए समय-समय पर निरीक्षण करें और जरूरत पड़ने पर जैविक या रासायनिक कीटनाशकों का छिड़काव करें। अश्वगंधा की फसल 150 से 180 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। जब पौधे की पत्तियां पीली पड़ने लगें और तने सूख जाएं, तो यह फसल की कटाई का संकेत होता है।

कटाई के बाद जड़ों को अच्छे से साफ करें और धूप में अच्छी तरह सुखाएं ताकि नमी पूरी तरह निकल जाए। सुखाने के बाद जड़ों को छायादार स्थान में सुरक्षित भंडारण के लिए पैक किया जाता है।

एक बीघे में अश्वगंधा की खेती से किसान 70,000 से 1,00,000 रुपये तक की आमदनी कमा सकते हैं, जो पारंपरिक फसलों की तुलना में कहीं अधिक है। यही कारण है कि अब देश के कई हिस्सों में किसान पारंपरिक फसलों के बजाय अश्वगंधा जैसे औषधीय पौधों की खेती की ओर रुख कर रहे हैं।

इस फसल की बढ़ती मांग और बेहतर बाजार मूल्य को देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि अश्वगंधा की खेती न केवल फायदे का सौदा है, बल्कि यह भविष्य में किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत करने वाला एक स्थायी समाधान भी बन सकता है।

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