Success Story: बंजर ज़मीन से सेबों की बग़ीचा, विनोद ढौंडियाल की प्रेरणादायक कहानी

Success Story: बंजर ज़मीन से सेबों की बग़ीचा, विनोद ढौंडियाल की प्रेरणादायक कहानी
उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र पौड़ी गढ़वाल जिले की थलीसैंण पट्टी के राठ ब्लॉक में बसे छोटे से गाँव सोबरा के निवासी विनोद ढौंडियाल ने वह कर दिखाया है, जो अधिकांश लोग केवल कल्पना में ही सोचते हैं। उन्होंने अपनी दो नाली बंजर पड़ी भूमि को न केवल उपजाऊ बनाया, बल्कि उसमें सेब की खेती कर समूचे क्षेत्र के लिए एक नई उम्मीद की किरण जगा दी है।
जहां एक ओर उत्तराखंड के पहाड़ी गाँवों से लोग खेती की कठिनाइयों और पलायन की चुनौतियों के चलते शहरों की ओर रुख कर रहे हैं, वहीं विनोद जी ने जमीनी स्तर पर एक ऐसी मिसाल पेश की है, जो ग्रामीण जीवन की आत्मनिर्भरता और खेती की संभावनाओं को उजागर करती है। उनकी मेहनत, धैर्य और दूरदृष्टि ने यह सिद्ध कर दिया कि पहाड़ों की बंजर ज़मीन में भी हरियाली लौट सकती है, बस ज़रूरत है संकल्प और श्रम की।
विनोद ढौंडियाल की ज़मीन वर्षों से अनुपयोगी पड़ी थी। न तो वहां कोई सिंचाई की व्यवस्था थी और न ही मिट्टी खेती के लिए उपयुक्त मानी जाती थी। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। उन्होंने स्वयं रिसर्च की, बागवानी विभाग से मार्गदर्शन लिया और बंजर भूमि की मिट्टी को सुधारने में महीनों मेहनत की। उन्होंने जल-संरक्षण की तकनीकों को अपनाया, जैविक खाद का प्रयोग किया और उपयुक्त प्रजाति के सेब के पौधों का चयन किया।
धीरे-धीरे उनकी ज़मीन पर हरियाली लौटने लगी। सेब के पौधे फले-फूले और अब वहां एक सुंदर बग़ीचा विकसित हो चुका है, जहाँ हज़ारों सेब लहराते हैं। आज यह भूमि एक मॉडल फार्म के रूप में विकसित हो गई है, जिसे देखने के लिए आसपास के गाँवों से किसान और अधिकारी भी पहुँच रहे हैं।
विनोद जी की यह उपलब्धि केवल एक कृषि सफलता नहीं है, बल्कि वह सामाजिक और मानसिक बदलाव की भी प्रतीक है। उन्होंने यह दिखाया कि परिस्थितियाँ चाहे कितनी भी विपरीत क्यों न हों, अगर इच्छाशक्ति और परिश्रम हो, तो कोई भी कार्य असंभव नहीं। आज उनके गाँव के कई युवा भी कृषि और बागवानी की ओर लौटने के लिए प्रेरित हो रहे हैं। यह कहानी उत्तराखंड के उन सैकड़ों गाँवों के लिए आशा की किरण है, जो बंजर भूमि और बेरोज़गारी की दोहरी मार झेल रहे हैं।