• October 30, 2025

Uttarakhand Energy Progress: उत्तराखंड, 25 वर्षों में ऊर्जा क्रांति, एआई और स्मार्ट मीटरिंग से बदली तस्वीर 

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Uttarakhand Energy Progress: उत्तराखंड, 25 वर्षों में ऊर्जा क्रांति, एआई और स्मार्ट मीटरिंग से बदली तस्वीर 

राज्य गठन के 25 वर्षों में उत्तराखंड ने ऊर्जा के क्षेत्र में ऐतिहासिक प्रगति की है। पर्वतीय राज्य ने न केवल बिजली उत्पादन में आत्मनिर्भरता की दिशा में बड़ा कदम बढ़ाया है, बल्कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, डिजिटल मॉनिटरिंग और स्मार्ट मीटरिंग जैसी आधुनिक तकनीकों को अपनाकर ऊर्जा प्रबंधन को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया है। इन नवाचारों की बदौलत राज्य ने ऊर्जा दक्षता, उपभोक्ता पारदर्शिता और संसाधनों के बेहतर उपयोग में राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान मजबूत की है।
उत्तराखंड जल विद्युत निगम लिमिटेड (यूजेवीएनएल) और पावर ट्रांसमिशन कारपोरेशन ऑफ उत्तराखंड लिमिटेड (पिटकुल) जैसी संस्थाओं ने पिछले 25 वर्षों में अपने कार्यों को पूरी तरह डिजिटल बना दिया है। ऊर्जा विभाग ने एआई, ऑटोमेशन और स्मार्ट मीटरिंग के जरिये बिजली वितरण को रियल टाइम डेटा से जोड़ा है, जिससे उपभोक्ताओं को सटीक बिलिंग और बिजली उपयोग की स्पष्ट जानकारी मिल रही है।

नवीकरणीय ऊर्जा में अग्रणी कदम
उत्तराखंड ने पारंपरिक जलविद्युत के साथ-साथ वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों—सौर, पवन और बायोमास—पर भी तेजी से काम किया है। भौगोलिक चुनौतियों के बावजूद सरकार ने इन क्षेत्रों में बड़े निवेश और परियोजनाएं शुरू की हैं। राज्य सरकार का लक्ष्य है कि वर्ष 2030 तक 1,000 मेगावाट सौर ऊर्जा क्षमता विकसित की जाए। चमोली और पिथौरागढ़ के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पवन ऊर्जा की संभावनाओं का परीक्षण चल रहा है, जबकि कृषि और वन अवशेषों से बायोमास ऊर्जा उत्पादन की दिशा में भी कार्य जारी है।

1440 मेगावाट जलविद्युत उत्पादन, स्वच्छ ऊर्जा की दिशा में अग्रसर
राज्य में इस समय 24 जलविद्युत संयंत्रों से 1.5 मेगावाट से लेकर 304 मेगावाट तक की क्षमता से बिजली उत्पादन किया जा रहा है। उत्तराखंड जल विद्युत निगम लिमिटेड ने स्थापना के समय लगभग 1000 मेगावाट उत्पादन क्षमता से शुरुआत की थी, जो अब 1440 मेगावाट तक पहुंच चुकी है। संस्था अब भू-तापीय ऊर्जा, परमाणु ऊर्जा, बैटरी भंडारण प्रणाली और स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में भी नए प्रयोग कर रही है।

81 प्रतिशत बिजली जलविद्युत स्रोतों से
राज्य की कुल स्थापित बिजली उत्पादन क्षमता लगभग 4200 मेगावाट है, जिसमें 81 प्रतिशत जलविद्युत, 9 प्रतिशत सौर ऊर्जा, 7 प्रतिशत तापीय ऊर्जा, और 3 प्रतिशत अन्य स्रोतों से प्राप्त होती है। इस संतुलन ने राज्य को “हरित ऊर्जा राज्य” के रूप में स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

चुनौतियां भी कम नहीं
उत्तराखंड की भौगोलिक स्थितियां कई बार परियोजनाओं के संचालन में बाधा डालती हैं। भूस्खलन, भूमि अधिग्रहण की दिक्कतें, पर्यावरणीय अनुमति और जलवायु परिवर्तन जैसी चुनौतियां लगातार सामने आती हैं। तापीय ऊर्जा उत्पादन सीमित होने के कारण राज्य को बाहर से बिजली खरीदनी पड़ती है, जिससे लागत बढ़ती है। इसके समाधान के लिए राज्य सरकार अब बैटरी ऊर्जा भंडारण प्रणाली, चीड़ की पत्तियों से बिजली उत्पादन और हरित ऊर्जा विस्तार जैसे वैकल्पिक उपायों पर ध्यान केंद्रित कर रही है।

ट्रांसमिशन नेटवर्क सात गुना बढ़ा
पावर ट्रांसमिशन कारपोरेशन ऑफ उत्तराखंड लिमिटेड (पिटकुल) ने 25 वर्षों में उल्लेखनीय वृद्धि की है। स्थापना के समय 10 करोड़ की अधिकृत पूंजी आज 100 करोड़ तक पहुंच गई है। ट्रांसमिशन नेटवर्क 1200 किलोमीटर से बढ़कर 8500 किलोमीटर हो गया है। ट्रांसमिशन उपलब्धता 99.38 प्रतिशत है और हानियां राष्ट्रीय औसत से काफी कम, केवल 2 प्रतिशत हैं। पिटकुल की क्रेडिट रेटिंग ‘A’ हो चुकी है, जिससे उपभोक्ताओं पर ब्याज का बोझ 0.5 प्रतिशत घट गया है।

सब स्टेशन क्षमता में सोलह गुना वृद्धि
राज्य ने 25 वर्षों में सब स्टेशनों की क्षमता को 600 मेगावाट से बढ़ाकर 10,000 मेगावाट से अधिक कर लिया है। सब स्टेशनों की संख्या 25 से बढ़कर 150 हो चुकी है। एशियाई विकास बैंक की सहायता से 132 केवी और 220 केवी के कई नए सब स्टेशन निर्माणाधीन हैं। इसके साथ ही ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर के अंतर्गत सौर, पवन और जलविद्युत परियोजनाओं से बिजली ट्रांसमिशन के लिए 220 केवी की नई लाइनों का निर्माण किया जा रहा है।

डिजिटल मॉनिटरिंग से भविष्य की तैयारी
राज्य में जीआईएस आधारित ट्रांसमिशन नेटवर्क मॉनिटरिंग सिस्टम संचालित है। इससे बिजली नेटवर्क की मेंटेनेंस और मॉनिटरिंग में गति आई है। पिटकुल आने वाले समय में 400 केवी ग्रिड नेटवर्क विस्तार की दिशा में काम कर रहा है, जिससे बिजली वितरण और ट्रांसमिशन और अधिक स्थायी और सुरक्षित बनेगा।

उत्तराखंड का ऊर्जा क्षेत्र अब तकनीकी और पर्यावरणीय दृष्टि से देश के अग्रणी राज्यों में शामिल है। एआई, स्मार्ट मीटरिंग और डिजिटल नवाचारों की मदद से राज्य न केवल ऊर्जा आत्मनिर्भरता बल्कि “स्मार्ट एनर्जी स्टेट” बनने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है।

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