Success Story: बाराबंकी के असलम खान बने मत्स्य पालन के चैंपियन, 24 तालाबों से खड़ा किया मछली उत्पादन का साम्राज्य

Success Story: बाराबंकी के असलम खान बने मत्स्य पालन के चैंपियन, 24 तालाबों से खड़ा किया मछली उत्पादन का साम्राज्य
उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के फतेहपुर तहसील के बकरापुर गांव के रहने वाले 40 वर्षीय असलम खान आज युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत बन चुके हैं। कभी सीमित संसाधनों और असफलताओं से जूझने वाले असलम ने कड़ी मेहनत और लगन के दम पर मत्स्य पालन (फिश फार्मिंग) के क्षेत्र में एक नया इतिहास रच दिया।
असलम खान ने ग्रैजुएशन के बाद वर्ष 2014 में अपनी पैतृक जमीन पर लगभग 8 एकड़ भूमि में केला उत्पादन शुरू किया। शुरुआती दो सालों तक मेहनत का कुछ फल मिला, लेकिन धीरे-धीरे यह व्यवसाय ठप पड़ गया। असफलता के इस दौर ने उन्हें नया रास्ता खोजने के लिए प्रेरित किया। इस दौरान उन्होंने बाराबंकी के गंगवारा गांव में मत्स्य पालक मोहम्मद आसिफ सिद्दीकी का फार्म देखा। यहीं से उन्हें मत्स्य पालन का विचार आया।
उन्होंने अपनी जमीन पर करीब 27,000 स्क्वायर फीट क्षेत्र में 3 तालाब बनवाए और पंगेशियस मछली का पालन शुरू किया। शुरुआत में गुणवत्तापूर्ण मत्स्य बीज की कमी और जानकारी के अभाव के कारण उन्हें नुकसान उठाना पड़ा, लेकिन असलम ने हार नहीं मानी। उन्होंने तालाबों में दोबारा 35 हजार पंगेशियस फिंगरलिंग डालीं और मात्र छह महीने में 21 टन मछली का उत्पादन किया। इस उत्पादन से उन्हें 8 लाख 40 हजार रुपये का लाभ हुआ।
इस सफलता से उत्साहित होकर उन्होंने 2018 में एक और तालाब बनाया और पंगेशियस के साथ भारतीय मेजर कार्प मछलियों का भी संचय शुरू किया। धीरे-धीरे असलम ने अपने मत्स्य पालन का विस्तार किया और आज 8 एकड़ भूमि में 24 तालाब और 2 नर्सरी बनाकर बड़े स्तर पर मछली उत्पादन कर रहे हैं।
असलम खान ने वर्तमान वर्ष में करीब 3 लाख पंगेशियस मत्स्य बीज डाले, जिनमें से अब तक लगभग 162 टन मछली की बिक्री की जा चुकी है। उनके फार्म में इस समय औसतन 400 से 500 ग्राम वज़न की करीब 40 हजार मछलियां मौजूद हैं, जिनकी बिक्री दिसंबर से शुरू होगी।
जनवरी 2019 से उन्होंने एबीस मत्स्य पूरक आहार की डीलरशिप भी ले ली। आज वे बाराबंकी, लखनऊ, सीतापुर, उन्नाव, अयोध्या, बहराइच और गोंडा के लगभग 350 किसानों को मछली का पूरक आहार उपलब्ध करा रहे हैं। असलम 10 लोगों को प्रत्यक्ष रोजगार भी दे रहे हैं, जो मत्स्य फार्म संचालन और फीड वितरण में उनकी मदद करते हैं।
असलम ने अपने फार्म पर आरएएस (Recirculatory Aquaculture System) इकाई भी स्थापित की है। इसके जरिए वे सर्दियों में पंगेशियस बीज रियरिंग करेंगे और फरवरी-मार्च तक आसपास के किसानों को बीज उपलब्ध कराएंगे। साथ ही वे मत्स्य विभाग के सहयोग से एफपीओ (फार्मर प्रोड्यूसर ऑर्गेनाइजेशन) गठित करने की योजना भी बना रहे हैं।
मत्स्य विभाग के सहयोग और मार्गदर्शन को असलम अपनी सफलता की कुंजी मानते हैं। 2018 में उन्हें मत्स्य पालन क्षेत्र में जनपद स्तर पर प्रथम स्थान भी मिला। मत्स्य विभाग के निदेशक एनएस रहमानी ने कहा कि असलम जैसे युवाओं और महिलाओं ने मत्स्य पालन के जरिए आत्मनिर्भरता की नई मिसाल पेश की है। यह न सिर्फ प्रदेश सरकार और केंद्र सरकार की योजनाओं की सफलता को दर्शाता है, बल्कि समाज के हर वर्ग को आर्थिक सशक्तिकरण की दिशा में जोड़ता है।