Uttarakhand: एक अकेली महिला ने खड़ा किया पूरा जंगल: 76 साल की प्रभा देवी की हरियाली की गाथा
शिक्षा का अर्थ केवल स्कूल और डिग्री से नहीं होता—यह बात उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले की पालशत गाँव में रहने वाली 76 वर्षीय प्रभा देवी ने पूरी दुनिया को अपने काम से सिखा दी है। प्रभा देवी न तो पढ़ी-लिखी हैं, न ही उन्हें अपनी जन्मतिथि ठीक से याद है, लेकिन वे यह अच्छी तरह समझती हैं कि भविष्य की पीढ़ियों के लिए पेड़ कितने जरूरी हैं। इसी सोच ने उन्हें अपनी ज़िंदगी पर्यावरण को समर्पित करने के लिए प्रेरित किया।
प्रभा देवी का जीवन आम महिलाओं से थोड़ा अलग रहा है। महज़ 16 साल की उम्र में उनकी शादी हो गई थी। शिक्षा की कभी सुविधा नहीं मिली, लेकिन अनुभव से उन्होंने प्रकृति को पढ़ा, पेड़-पौधों की भाषा को समझा और हरियाली को अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया। उन्होंने अपने गाँव में एक ऐसा जंगल तैयार कर दिया है, जिसे देखकर हर कोई अचंभित रह जाता है।
इस जंगल में 500 से भी अधिक पेड़ हैं, जिनमें ओक, रोडोडेंड्रोन, दालचीनी, रीठा (सोप नट) जैसी प्रजातियाँ शामिल हैं। ये सभी पेड़ न केवल पर्यावरण की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र को भी संतुलित रखते हैं।
प्रभा देवी बताती हैं, “मेरे परिवार के पास ज़मीन का एक छोटा टुकड़ा था जिसे यूं ही छोड़ दिया गया था। वहां खेती नहीं होती थी। मैंने सोचा, क्यों न इसे हरियाली से भर दिया जाए? मैंने वहाँ पेड़ लगाने शुरू कर दिए और धीरे-धीरे यह एक घना जंगल बन गया।”
पेड़ लगाने की कोई पारंपरिक ट्रेनिंग न होने के बावजूद प्रभा देवी ने पेड़ों के चयन, रोपण के सही समय, देखभाल और जल प्रबंधन जैसे तमाम पहलुओं को खुद सीखा और अपनी परिस्थितियों के अनुसार अपनाया। वे मिट्टी की गुणवत्ता पहचानती हैं, किस मौसम में कौन-सा पौधा लगाया जाए ये जानती हैं, और सबसे बड़ी बात—पेड़ों को ऐसे पालती हैं जैसे अपने बच्चों को।
उनका कहना है कि वे बंजर जमीन को फिर से हरा-भरा बनाना चाहती हैं और उनका सपना है कि गाँव की हर परती ज़मीन पर एक पेड़ खड़ा हो। प्रभा देवी को लोग आज “Friend of Trees” यानी “पेड़ों की सखी” के नाम से जानते हैं।
हालाँकि उनके बच्चे अब शहरों में जाकर बस गए हैं, लेकिन प्रभा देवी ने अपने गाँव को नहीं छोड़ा। वे मानती हैं कि गाँव ही उनका संसार है और प्रकृति उनकी साधना। हर सुबह वे अपने जंगल में जाती हैं, पेड़ों से बात करती हैं, उनकी देखभाल करती हैं और नये पौधे लगाने की योजना बनाती हैं।
उनका जीवन एक मिसाल है—कि अगर नीयत साफ हो और दिल में जुनून हो, तो कोई भी उम्र या परिस्थिति आड़े नहीं आती। वे न केवल अपने गाँव की पहचान बन चुकी हैं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण की एक जीवंत प्रेरणा भी हैं। आज जब दुनिया जलवायु संकट से जूझ रही है, ऐसे में प्रभा देवी जैसी ग्रामीण महिलाएं हमें यह याद दिलाती हैं कि असली समाधान किताबों से नहीं, ज़मीन से और पेड़ों की छांव में ही निकलता है।