Uttarakhand: हिमालयी राज्यों के सतत विकास हेतु स्पेस टेक्नोलॉजी पर उत्तराखंड में राज्य स्तरीय संगोष्ठी आयोजित

उत्तराखंड की राजधानी देहरादून स्थित यू-सैक सभागार में आज “विकसित भारत 2047 के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी एवं उसके अनुप्रयोगों का लाभ हिमालयीय राज्यों के दृष्टांत” विषय पर एक दिवसीय राज्य स्तरीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र (यूसैक) द्वारा भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के सहयोग से जुलाई के प्रथम सप्ताह में प्रस्तावित राज्य स्तरीय स्टेट स्पेस मीट की पूर्व तैयारी के अंतर्गत आयोजित किया गया।
इस संगोष्ठी का उद्देश्य यह था कि हिमालयी राज्यों विशेषकर उत्तराखंड के सतत विकास के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी की भूमिका को विस्तार से समझा जाए और इसका विभिन्न विभागों में कैसे उपयोग हो रहा है, इस पर समन्वित डॉक्यूमेंटेशन तैयार किया जाए। कार्यक्रम में केंद्रीय और राज्य सरकार के विभिन्न रेखीय विभागों के अधिकारियों, वैज्ञानिकों और अभियंताओं ने भाग लिया और उन्होंने अंतरिक्ष तकनीक से जुड़ी वर्तमान और भविष्य की योजनाओं पर अपने विचार प्रस्तुत किए।
यूसैक के निदेशक प्रोफेसर दुर्गेश पंत ने बताया कि प्रस्तावित स्टेट स्पेस मीट के लिए एक व्यापक ‘विजन डाक्यूमेंट’ तैयार किया जाएगा। इसमें राज्य के सभी 21 रेखीय विभागों को आठ प्रमुख थीमों में विभाजित किया गया है—कृषि, पर्यावरण एवं ऊर्जा, इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलेपमेंट, जल संसाधन, शिक्षा एवं स्वास्थ्य, आपदा प्रबंधन, डेवलेपमेंट प्लानिंग, तथा प्रौद्योगिकी प्रसार, संचार एवं नेविगेशन। विभागों को यह जिम्मेदारी दी गई है कि वे अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के उपयोग से जुड़ी अपनी सक्रिय और भावी परियोजनाओं का विस्तृत विवरण प्रस्तुत करें।
प्रो. पंत ने इस बात पर भी जोर दिया कि हिमालयी क्षेत्र भूगर्भीय दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील है, जहां भूस्खलन, भूकंप और बादल फटने जैसी आपदाएं आम हैं। ऐसे में उच्च विभेदी उपग्रह डेटा की मदद से इन क्षेत्रों की सटीक निगरानी संभव हो पाई है। उन्होंने यह भी कहा कि आपदा प्रबंधन, प्राकृतिक संसाधनों की निगरानी, पर्यावरण अनुश्रवण और बुनियादी ढांचे के विकास में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी बेहद उपयोगी सिद्ध हो रही है।
इस संगोष्ठी में इसरो के क्षेत्रीय सुदूर संवेदन केंद्र (उत्तर) के वैज्ञानिक डॉ. अभिनव शुक्ला ने आगामी राष्ट्रीय स्तर की स्पेस मीट के संदर्भ में जानकारी साझा की। वहीं भारतीय सुदूर संवेदन संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. प्रवीण ठाकुर ने भारतीय स्पेस मिशन और अंतरिक्ष तकनीक के विविध अनुप्रयोगों पर एक विस्तृत प्रस्तुति दी।
संगोष्ठी में वन, सिंचाई, जल संस्थान, मृदा, पशुपालन, आपदा प्रबंधन, शिक्षा, स्वास्थ्य, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, ऊर्जा, कृषि, उद्यान, रेशम, जैव विविधता बोर्ड, लोक निर्माण विभाग, राजस्व, ग्राम्य विकास सहित 21 विभागों के 40 प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
कार्यक्रम का संचालन यूसैक की वैज्ञानिक डॉ. सुषमा गैरोला ने किया। इस दौरान यूसैक के प्रमुख वैज्ञानिकों और तकनीकी विशेषज्ञों—डॉ. अरूणा रानी, डॉ. आशा थपलियाल, डॉ. प्रियदर्शी उपाध्याय, डॉ. गजेन्द्र सिंह रावत, डॉ. नीलम रावत, श्री पुष्कर कुमार, श्री शशांक लिंगवाल, डॉ. दिव्या उनियाल, श्री आर.एस. मेहता, श्री सुधाकर भट्ट, श्री प्रदीप सिंह रावत, श्री देवेश कपरूवाण, श्री सौरभ डंगवाल, श्री गोविन्द सिंह नेगी, श्री विकास शर्मा, श्री कुशलानंद सेमवाल, श्री चन्द्रमोहन फर्स्वाण, और श्रीमती मीना पंत सहित अनेक विशेषज्ञ उपस्थित रहे।