11 लाख की नौकरी छोड़ पहाड़ लौटीं डॉ. सबिता, बंजर ज़मीन को बनाया हरा-भरा, स्वरोजगार की मिसाल बनीं

Uttarakhand: 11 लाख की नौकरी छोड़ पहाड़ लौटीं डॉ. सबिता, बंजर ज़मीन को बनाया हरा-भरा, स्वरोजगार की मिसाल बनीं
जहाँ उत्तराखंड के युवाओं की एक बड़ी संख्या रोज़गार की तलाश में पहाड़ छोड़ शहरों की ओर पलायन कर रही है, वहीं डॉ. सबिता रावत ने ठीक इसके विपरीत रास्ता चुना। उन्होंने देश की एक प्रतिष्ठित फार्मास्युटिकल कंपनी में 11 लाख रुपये सालाना के उच्च पद को त्याग दिया और पौड़ी गढ़वाल ज़िले के अपने गांव के समीप सिरौली नामक स्थान पर आकर खेती को अपने जीवन का मिशन बना लिया।
महानगरों में बीता जीवन, बड़ी कंपनियों में 12 वर्षों तक काम का अनुभव, और अपने परिवार को आर्थिक रूप से स्थापित करने के बाद डॉ. सबिता ने जब यह निर्णय लिया तो उनके परिवार और सहयोगियों के लिए यह किसी आश्चर्य से कम नहीं था। लेकिन पहाड़ से लगाव और मिट्टी से जुड़ाव की भावना इतनी प्रबल थी कि उन्होंने सभी आशंकाओं को दरकिनार कर दिया।
सिरौली गांव में उन्होंने करीब 25 नाली ज़मीन खरीदी और उस पर सब्ज़ियों और फलों की जैविक खेती शुरू कर दी। उनके प्रयासों ने जल्द ही बंजर पड़ी ज़मीन को हरियाली में बदल दिया। आज वह अपने खेतों में टमाटर, शिमला मिर्च, पत्ता गोभी, पालक के साथ-साथ सेब और कीवी जैसे फल भी उगा रही हैं।
डॉ. सबिता का कहना है कि परिवार का सहयोग उनके इस सफर में सबसे बड़ी ताकत बना। विशेष रूप से उनकी मां हमेशा उन्हें साहस देती रहीं और हर कदम पर उनके साथ खड़ी रहीं। उन्होंने बताया कि पहाड़ में खेती केवल पेट भरने का जरिया नहीं बल्कि आत्मनिर्भरता और संतोष का रास्ता है।
उनकी इस पहल ने न केवल उन्हें आर्थिक रूप से मजबूत बनाया है, बल्कि आस-पास के ग्रामीणों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बनी हैं। कई युवा अब उनसे खेती की बारीकियां सीख रहे हैं और स्वरोजगार की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।
डॉ. सबिता का सफर यह सिद्ध करता है कि यदि इच्छा दृढ़ हो तो कोई भी राह मुश्किल नहीं होती। आज वह न केवल एक सफल किसान हैं, बल्कि महिला सशक्तिकरण, स्वरोजगार और ग्रामीण विकास की मिसाल बन चुकी हैं।