• May 17, 2025

8वीं पास किसान ने जैविक खेती से रच दिया इतिहास, 1000 क्विंटल वर्मी कंपोस्ट उत्पादन, हर साल 4 लाख की एक्स्ट्रा कमाई

 8वीं पास किसान ने जैविक खेती से रच दिया इतिहास, 1000 क्विंटल वर्मी कंपोस्ट उत्पादन, हर साल 4 लाख की एक्स्ट्रा कमाई
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8वीं पास किसान ने जैविक खेती से रच दिया इतिहास, 1000 क्विंटल वर्मी कंपोस्ट उत्पादन, हर साल 4 लाख की एक्स्ट्रा कमाई

राजस्थान के झालावाड़ जिले के रायपुर गांव से ताल्लुक रखने वाले किसान राजेंद्र सिंह झाला ने यह साबित कर दिया है कि शिक्षा की सीमाएं यदि संकल्प के साथ पार की जाएं, तो कोई भी अपनी किस्मत खुद लिख सकता है। केवल 8वीं तक पढ़ाई करने वाले राजेंद्र सिंह ने साल 2021 में जैविक खेती और वर्मी कंपोस्ट उत्पादन की दिशा में कदम बढ़ाया और आज वे जिले के सबसे सफल जैविक किसान और खाद निर्माता बन चुके हैं।

मंदी के समय बदला जीवन का रास्ता

राजेंद्र सिंह पहले टूरिंग टॉकीज के काम से जुड़े थे, लेकिन काम में आई मंदी ने उन्हें दूसरी दिशा में सोचने को मजबूर किया। जब अधिकांश किसान खेती में बढ़ती लागत और घटते मुनाफे से निराश होकर खेत छोड़ रहे थे, तब राजेंद्र ने उल्टा रास्ता चुना – जैविक खेती का। उन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र, झालावाड़ से प्रशिक्षण लिया और अपने खेत को प्रयोगशाला बना डाला।

6 बीघा में जैविक खेती, 32 बेड पर वर्मी कंपोस्ट यूनिट

राजेंद्र के पास कुल 8 बीघा भूमि है, जिसमें से 6 बीघा में वे जैविक पद्धति से गेहूं, प्याज, भिंडी, फली, मटर, धनिया जैसी फसलें उगाते हैं। बाकी 2 बीघा जमीन पर उन्होंने 32 वर्मी बेड बनाए हैं, जहां वे गाय के गोबर से वर्मी कंपोस्ट बनाते हैं। उनका सालाना वर्मी खाद उत्पादन करीब 1000 क्विंटल तक पहुंच चुका है।

₹12 प्रति किलो की दर से वर्मी खाद की बिक्री

राजेंद्र सिंह वर्मी कंपोस्ट को ₹12 प्रति किलो की दर से बेचते हैं। इस खाद के ग्राहक आसपास के जिलों के किसान हैं, जो केमिकल से परे जाकर प्राकृतिक खेती करना चाहते हैं। इस बिक्री से उन्हें हर साल लगभग ₹4 लाख रुपये की अतिरिक्त आय होती है। यही नहीं, उन्होंने अपने खेत में एक तालाब भी खुदवाया है, जिससे सिंचाई और मछली पालन के विकल्प खुले हैं।

ऑर्गेनिक फसलों से मिल रहा ज्यादा मुनाफा

राजेंद्र बताते हैं कि जैविक गेहूं की कीमत बाजार में 10 रुपये प्रति किलो अधिक मिलती है। यही नहीं, रासायनिक खाद की जगह वर्मी खाद इस्तेमाल करने से जमीन की उर्वरता भी बनी रहती है और उत्पादन भी अच्छा होता है। उनके काम को देखकर क्षेत्र के अन्य किसान भी जैविक खेती की ओर प्रेरित हो रहे हैं।

मिल चुके हैं कई सम्मान

राजेंद्र सिंह की मेहनत और नवाचार को सरकारी स्तर पर भी सराहा गया है। उन्हें कृषि रत्न सम्मान और नवाचार पुरस्कार जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों से नवाजा गया है। उन्होंने अपनी कहानी से यह संदेश दिया है कि यदि लगन और समर्पण हो, तो किसान भी देश की प्रगति में अग्रणी भूमिका निभा सकते हैं।

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