Vegetable farming: सब्जियों की खेती से किसान की तरक्की की मिसाल: बाराबंकी के आकाश यादव की कहानी

Vegetable farming: सब्जियों की खेती से किसान की तरक्की की मिसाल: बाराबंकी के आकाश यादव की कहानी
भारत में खेती सदियों से आजीविका का प्रमुख स्रोत रही है, लेकिन बदलते दौर में अब पारंपरिक खेती से हटकर सब्जियों की खेती किसानों को अधिक मुनाफा दिला रही है। जहां पारंपरिक फसलों में निवेश के बाद लाभ प्राप्त करने में लंबा समय लगता है, वहीं सब्जियों की खेती में कम समय में अधिक आमदनी संभव है। उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के बड़ेल गांव के किसान आकाश यादव इस बात की एक जीवंत मिसाल हैं।
आकाश यादव ने पारंपरिक खेती को पीछे छोड़कर सब्जियों की खेती को अपनाया, और आज वे बैंगन और शिमला मिर्च की खेती से सिर्फ 20,000 रुपए की लागत में डेढ़ लाख रुपए तक का मुनाफा कमा रहे हैं। खेती के प्रति उनका समर्पण, वैज्ञानिक तरीके और फसल चयन ने उन्हें ग्रामीण क्षेत्र का प्रेरणास्रोत बना दिया है।
आकाश वर्तमान में अपने दो से तीन बीघा ज़मीन पर बैंगन और शिमला मिर्च की खेती कर रहे हैं। एक बीघा में उन्होंने शिमला मिर्च लगाई है, जबकि डेढ़ बीघा में बैंगन की फसल उगाई है। आकाश बताते हैं कि गर्मियों के मौसम में बहुत कम किसान इन फसलों की खेती करते हैं, जिससे बाजार में इनकी मांग बढ़ जाती है और उन्हें अच्छे दाम मिलते हैं। शिमला मिर्च की खेती में उन्हें प्रति बीघा करीब 15 से 20 हजार रुपए का खर्च आता है, जबकि बैंगन की खेती में 5 से 6 हजार रुपए का निवेश होता है।
उनका अनुभव बताता है कि सब्जियों की खेती की शुरुआत में ज़मीन की अच्छी तैयारी जरूरी होती है। उदाहरण के तौर पर, बैंगन की फसल के लिए बलुई दोमट मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है। इसमें जल निकासी की उचित व्यवस्था होना जरूरी है। खेत की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए, जिसके बाद 3-4 बार अच्छी तरह जुताई करके मिट्टी को भुरभुरी बनाना चाहिए। बैंगन के पौधों को आमतौर पर शाम के समय रोपा जाता है और इसके बाद हल्की सिंचाई की जाती है। गर्मियों में हर 3-4 दिन में और सर्दियों में 12-15 दिन में एक बार सिंचाई की जरूरत पड़ती है। यह फसल लगभग 60 से 80 दिनों में तैयार हो जाती है।
शिमला मिर्च की खेती में आकाश यादव ने ड्रिप इरिगेशन सिस्टम का इस्तेमाल शुरू किया है जिससे पानी की काफी बचत होती है और पौधों को नियमित नमी भी मिलती रहती है। दोमट मिट्टी में शिमला मिर्च की खेती सबसे उपयुक्त मानी जाती है। प्रति एकड़ में 70 से 100 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है और 30-35 दिन में पौधे रोपाई योग्य हो जाते हैं। जब पौधे 16-20 सेंटीमीटर के हो जाएं, तब उनकी खेत में रोपाई करनी चाहिए। फसल की रोपाई के 8 से 10 हफ्तों के भीतर शिमला मिर्च तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है।
आकाश यादव की मेहनत और सूझबूझ ने साबित कर दिया है कि यदि किसान पारंपरिक तौर-तरीकों से हटकर वैज्ञानिक पद्धतियों और बाज़ार की मांग के अनुसार खेती करें, तो वे आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बन सकते हैं। उनकी कहानी उन लाखों किसानों के लिए एक प्रेरणा है जो खेती को घाटे का सौदा मानते हैं। आकाश की खेती न सिर्फ लाभदायक है, बल्कि टिकाऊ और आधुनिक कृषि की ओर एक महत्वपूर्ण कदम भी है।