Success Story: गन्ना खेतों में मूंगफली की क्रांति, बदल रही किसानों की किस्मत

Success Story: गन्ना खेतों में मूंगफली की क्रांति, बदल रही किसानों की किस्मत
पश्चिमी उत्तर प्रदेश की उपजाऊ धरती को गन्ना बेल्ट कहा जाता है, जहां दशकों से गन्ना और गेहूं की खेती ने किसानों की जिंदगी और आजीविका को आकार दिया है। लेकिन इस पारंपरिक खेती के तरीके ने धीरे-धीरे अपनी चुनौतियां दिखाना शुरू कर दिया। एक ही फसल बार-बार उगाने से मिट्टी की उर्वरता कम हुई, पोषक तत्व खत्म होने लगे और उत्पादन में विविधता घट गई। किसानों की आमदनी सीमित होती चली गई। इसी परिस्थिति में मेरठ जिले के एक प्रगतिशील किसान, नीमेश, ने जोखिम उठाकर खेती का नया रास्ता चुना और गन्ने के साथ मूंगफली की इंटरक्रॉपिंग कर एक नई मिसाल कायम कर दी।
नीमेश ने पहली बार गन्ने के बीच मूंगफली की खेती करने का प्रयोग किया। शुरुआत में उन्हें आशंका थी कि कहीं गन्ने की पैदावार प्रभावित न हो, लेकिन परिणाम उम्मीद से कहीं बेहतर रहे। मूंगफली की ताजा और बंपर फसल ने न केवल उनका आत्मविश्वास बढ़ाया, बल्कि आस-पास के किसानों को भी नई दिशा दिखाई। मई 2025 में आयोजित विकसित कृषि संकल्प अभियान के जिला स्तरीय कार्यक्रम में केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने नीमेश को उनके इस प्रयास के लिए सम्मानित किया।
अपनी सफलता के बारे में बताते हुए नीमेश ने कहा, “मैं खुश हूं कि मेरे प्रयोग ने कई किसानों को नई प्रेरणा दी। गलतियां भी हुईं लेकिन नतीजे शानदार रहे। अब अगले साल बड़े स्तर पर इस पद्धति को अपनाकर बंपर पैदावार का लक्ष्य रखूंगा।” नीमेश अकेले नहीं हैं। पश्चिमी यूपी के मेरठ, मुजफ्फरनगर, बागपत और हापुड़ जिलों के 50 से अधिक किसान अब गन्ने की मुख्य फसल के साथ मूंगफली, चारा मक्का, सब्जियां, लोबिया और भिंडी जैसी फसलें भी उगाकर अतिरिक्त आमदनी हासिल कर रहे हैं।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के भारतीय कृषि प्रणाली अनुसंधान संस्थान (ICAR-IIFSR), मोदीपुरम के वरिष्ठ वैज्ञानिक रघुवीर सिंह का कहना है कि गन्ने जैसी चौड़ी कतार वाली फसलों में तिलहनों और सब्जियों की इंटरक्रॉपिंग एक व्यावहारिक और आशाजनक समाधान है। उनके अनुसार “खांचे विधि और जोड़ी-पंक्ति गन्ना रोपण तकनीक” किसानों को नकदी फसल गन्ना बनाए रखने के साथ-साथ तिलहन और दलहन की खेती का विकल्प भी देती है। इससे न केवल खेत की उत्पादकता बढ़ती है, बल्कि किसानों की आय के स्रोत भी विविध होते हैं।
विशेषज्ञ मानते हैं कि इस तरह के प्रयास न सिर्फ किसानों के जीवन में बदलाव ला रहे हैं, बल्कि देश की तिलहन और खाद्य तेल की बढ़ती मांग को पूरा करने में भी योगदान दे सकते हैं। वर्तमान में भारत अपनी खाद्य तेल की जरूरत का लगभग 60 प्रतिशत आयात करता है। ऐसे में यदि किसान इंटरक्रॉपिंग के जरिए मूंगफली और अन्य तिलहनों को बड़े पैमाने पर अपनाते हैं तो आयात पर निर्भरता घट सकती है और किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य को भी बढ़ावा मिलेगा।
नीमेश और उनके जैसे किसानों की पहल यह साबित करती है कि यदि सही सोच और वैज्ञानिक तकनीक अपनाई जाए तो परंपरागत खेती में भी क्रांति लाई जा सकती है। गन्ने के खेतों में मूंगफली की यह क्रांति धीरे-धीरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश की किस्मत बदलने की राह पर है।