Jharkhand: लाखों की नौकरी छोड़ गांव लौटे शुभम, बने मिसाल—दर्जनों को दे रहे रोजगार

Jharkhand: लाखों की नौकरी छोड़ गांव लौटे शुभम, बने मिसाल—दर्जनों को दे रहे रोजगार
झारखंड के चतरा जिले के एक छोटे से गांव सोहरकला से ताल्लुक रखने वाले कुमार शुभम ने वो कर दिखाया है, जो बहुत कम लोग कर पाते हैं। बीटेक और एमबीए की पढ़ाई पूरी करने के बाद शुभम ने देश की एक नामी मल्टीनेशनल कंपनी में लाखों रुपये के सालाना पैकेज पर नौकरी की। चमक-धमक वाली शहरी ज़िंदगी, कॉर्पोरेट का आकर्षण और हर महीने मोटी सैलरी—सब कुछ था उनके पास। लेकिन फिर भी उनका मन गांव की मिट्टी से जुड़ा रहा।
शहर की ऊंची इमारतों और व्यस्त जीवनशैली के बीच शुभम का मन शांत नहीं था। उन्हें महसूस हुआ कि असली सुकून तो अपने गांव में है, अपनी ज़मीन पर है। यही सोच उन्हें वापस खींच लाई। वर्ष 2011 में उन्होंने अपनी नौकरी को अलविदा कहा और हमेशा के लिए गांव लौट आए।
गांव लौटकर शुभम ने सिर्फ खुद के लिए नहीं, बल्कि पूरे समुदाय के लिए कुछ करने की ठानी। उन्होंने पर्यावरण संरक्षण, आधुनिक खेती और पशुपालन को अपने जीवन का आधार बना लिया। सबसे पहले उन्होंने वैज्ञानिक तरीकों से खेती शुरू की। रासायनिक खादों की जगह जैविक खाद, ड्रिप इरिगेशन जैसी तकनीकों का उपयोग कर उन्होंने बंजर पड़ी ज़मीन को उपजाऊ बना दिया।
साथ ही उन्होंने डेयरी फार्मिंग की शुरुआत की और उत्तम नस्ल की गायों और बकरियों को पालना शुरू किया। देखते ही देखते उनका फार्म गांव का एक मॉडल बन गया, जिसे देखने दूर-दूर से लोग आने लगे। उन्होंने न केवल खुद की आमदनी बढ़ाई, बल्कि गांव के करीब दो दर्जन युवाओं को रोजगार देकर उनकी जिंदगी भी संवार दी।
पर्यावरण को लेकर भी शुभम ने अहम कदम उठाया। उन्होंने अपने स्तर पर 20 हजार से अधिक पौधे लगाए और आज उनका गांव हरियाली की एक मिसाल बन चुका है। गांव के रास्तों, खेतों और सार्वजनिक जगहों पर लगे पेड़ न केवल वातावरण को शुद्ध कर रहे हैं, बल्कि गांव की सुंदरता भी बढ़ा रहे हैं।
आज शुभम एक सफल कृषक और पशुपालक हैं। वे हर साल 15 से 20 लाख रुपये तक की आमदनी कर रहे हैं। उनकी सफलता ने न केवल गांव वालों का नजरिया बदला है, बल्कि पढ़े-लिखे युवाओं को भी यह सिखाया है कि गांव में रहकर भी आत्मनिर्भर और सफल बना जा सकता है।
शुभम की कहानी आज देश के उन हजारों युवाओं के लिए प्रेरणा है जो केवल नौकरी को ही सफलता का पैमाना मानते हैं। उन्होंने यह साबित कर दिया कि अगर इरादा मजबूत हो, तो गांव की मिट्टी में भी सुनहरा भविष्य उगाया जा सकता है।