Success of dairy farming: आधुनिक तकनीकों से आत्मनिर्भरता, युवा किसान प्रदीपभाई पटेल की सफलता की कहानी

Success of dairy farming: आधुनिक तकनीकों से आत्मनिर्भरता, युवा किसान प्रदीपभाई पटेल की सफलता की कहानी
आज के युवा किसान पारंपरिक खेती के बजाय आधुनिक तकनीकों को अपना रहे हैं, जिससे उनकी आय में उल्लेखनीय वृद्धि हो रही है। मल्टीलेयर फार्मिंग से लेकर जैविक खेती और पशुपालन तक, वे नवाचारों के माध्यम से अधिक लाभ कमा रहे हैं। गुजरात के सूरत जिले के महुवा तालुका स्थित वचावद गांव के युवा आदिवासी किसान प्रदीपभाई रमणभाई पटेल इसी बदलाव का एक बेहतरीन उदाहरण हैं। उन्होंने केवल 12वीं तक की शिक्षा प्राप्त की है, लेकिन अपनी सूझबूझ और सरकारी योजनाओं का सही लाभ उठाकर वे हर महीने 30,000 रुपये की कमाई कर रहे हैं।
प्रदीपभाई पशुपालन को अपनी आय का प्रमुख स्रोत मानते हैं और आधुनिक तकनीकों का उपयोग कर रहे हैं। सरकार द्वारा पशुपालकों की आय बढ़ाने के लिए कई योजनाएं चलाई जा रही हैं, जिनमें से ‘चैफ कटर योजना’ ने उनके जीवन में महत्वपूर्ण बदलाव लाया। इस योजना के तहत, गुजरात आदिवासी विकास निगम ने उन्हें घास काटने की मशीन प्रदान की, जिससे पशुओं के लिए चारा तैयार करना आसान हो गया। यह मशीन घास को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटती है, जिससे चारा खाने में आसान होता है और बर्बादी भी कम होती है।
प्रदीपभाई को इस योजना की जानकारी मांडवी आदिवासी उपयोजना कार्यालय से मिली। उन्होंने वहां जाकर आवेदन किया और जाति प्रमाण पत्र, राशन कार्ड, बैंक पासबुक, डेयरी मवेशियों के स्वामित्व प्रमाण और पहचान पत्र जैसे आवश्यक दस्तावेज जमा किए। सरकार ने 75% सब्सिडी प्रदान करते हुए उन्हें 50,000 रुपये की सहायता दी, जिससे वे यह मशीन केवल 3,000 रुपये में प्राप्त कर सके।
इससे पहले, हाथ से घास काटने में काफी समय लगता था और चारे की बर्बादी भी अधिक होती थी। प्रदीपभाई बताते हैं कि मशीन से कटाई करने पर घास छोटे टुकड़ों में कटती है, जिससे जानवरों के लिए खाना आसान हो जाता है और दूध उत्पादन में वृद्धि होती है। वर्तमान में उनके पास तीन गायें हैं, जो नियमित रूप से दूध देती हैं। मशीन के उपयोग से उन्हें हर महीने 15,000 रुपये का शुद्ध लाभ हो रहा है।
प्रदीपभाई के अनुसार, उनका पूरा परिवार खेती और पशुपालन से जुड़ा हुआ है। पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने भी इस क्षेत्र में अपना भविष्य बनाया। उनके पास कुल सात पशु हैं, जिनसे हर महीने 30,000 रुपये की दूध बिक्री होती है। यह दूध वचावद गांव की डेयरी में जाता है, जिससे उनका परिवार आर्थिक रूप से सशक्त बना हुआ है। सरकार द्वारा दी गई घास काटने की मशीन उनके लिए वरदान साबित हुई है और उन्होंने अपने अनुभव से यह साबित कर दिया है कि सही तकनीक और सरकारी योजनाओं का लाभ उठाकर कोई भी किसान आत्मनिर्भर बन सकता है।