Success Story: सहारनपुर के शिक्षक किसान शहंशाह आलम ने यूट्यूब से सीखी तकनीक, ‘गोल्डन सेब’ उगाकर दोगुनी कमाई कर रहे हैं

Success Story: सहारनपुर के शिक्षक किसान शहंशाह आलम ने यूट्यूब से सीखी तकनीक, ‘गोल्डन सेब’ उगाकर दोगुनी कमाई कर रहे हैं
उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले में स्थित ननौता ब्लॉक के रहने वाले शहंशाह आलम ने यह साबित कर दिया है कि अगर सोच अलग हो और तकनीक के साथ काम किया जाए, तो खेती भी लाखों की कमाई का जरिया बन सकती है। पेशे से शिक्षक शहंशाह आलम ने यूट्यूब से प्रेरणा लेकर हिमालयी ‘गोल्डन सेब’ यानी हरीमन 99 वैरायटी की खेती शुरू की, और आज वह उससे पारंपरिक खेती की तुलना में दोगुना मुनाफा कमा रहे हैं।
करीब पांच साल पहले उन्होंने खेती में कुछ नया करने की ठानी और हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर गांव में विकसित हरीमन 99 वैरायटी के 100 सेब के पौधे अपने खेत में लगाए। यह सेब की ऐसी किस्म है जो राजस्थान और गर्म इलाकों के लिए विकसित की गई है और 50 से 55 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान में भी फल दे सकती है। शहंशाह ने बताया कि इस वैरायटी में तीन साल के भीतर फल आना शुरू हो जाता है, और 8 साल में यह एक पौधे से 40 से 50 किलो तक फल दे सकती है।
वर्तमान में उनके बचे हुए 80 पौधों में से प्रत्येक से औसतन 10–15 किलो तक सेब मिल रहा है। खास बात यह है कि यह सेब आम की फसल से पहले तैयार हो जाता है, जिससे इसकी मंडी में मांग अधिक और दाम बेहतर मिलते हैं। यह सेब बाजार में 100 रुपये प्रति किलो तक बिक रहा है। सेब की यह किस्म गर्मियों में भी फलती है, जब अन्य सेब बाजार से गायब होते हैं, जिससे इसका मूल्य और लाभ दोनों बढ़ जाते हैं।
सेब की इस किस्म में भरपूर मात्रा में विटामिन C और प्रोटीन पाया जाता है। स्वाद में यह काफी टेस्टी है और स्वास्थ्यवर्धक भी। यही वजह है कि उपभोक्ता इसे काफी पसंद कर रहे हैं। आलम ने बताया कि लोग इसे देखकर अक्सर सवाल करते हैं कि यह सेब लाल क्यों नहीं होता, लेकिन यह सेब थोड़ा-थोड़ा लाल भी हो जाता है, खासतौर पर पकने की अंतिम अवस्था में।
शहंशाह आलम का यह प्रयास न केवल उनके लिए आर्थिक रूप से लाभकारी रहा है, बल्कि वह अब अन्य किसानों को भी जागरूक कर रहे हैं कि वे पारंपरिक खेती की जगह नवाचार और आधुनिक किस्मों की ओर बढ़ें। वह बताते हैं कि यह सेब कोल्ड स्टोरेज में स्टोर करके ऑफ सीजन में भी बेचा जा सकता है, जिससे इसमें और अधिक मुनाफा कमाने की संभावना रहती है।
उन्होंने कहा कि यह तकनीक अब केवल राजस्थान या पहाड़ी क्षेत्रों तक सीमित नहीं रही, बल्कि उत्तर प्रदेश के मैदानी इलाकों में भी सफलतापूर्वक अपनाई जा रही है। इससे यह स्पष्ट होता है कि अगर वैज्ञानिक तरीकों को अपनाया जाए और नई फसलों के लिए रिसर्च आधारित निर्णय लिए जाएं, तो किसान भी स्मार्ट फार्मर बन सकते हैं।
शिक्षक शहंशाह आलम का यह प्रयोग और अनुभव देश के उन लाखों किसानों के लिए प्रेरणा बन सकता है जो कम जमीन और सीमित संसाधनों में खेती करते हैं। यूट्यूब जैसे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से सीखी गई जानकारी और जमीनी मेहनत ने उन्हें एक सफल किसान बना दिया है। अब वह खेती से न केवल दोगुनी कमाई कर रहे हैं, बल्कि अन्य किसानों को भी इसी राह पर चलने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।