• June 4, 2025

Uttarakhand: उत्तराखंड में हर्बल और एरोमा टूरिज्म को बढ़ावा देने की तैयारी, 628 करोड़ के प्रोजेक्ट की हुई समीक्षा

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Uttarakhand: उत्तराखंड में हर्बल और एरोमा टूरिज्म को बढ़ावा देने की तैयारी, 628 करोड़ के प्रोजेक्ट की हुई समीक्षा

देहरादून: उत्तराखंड सरकार राज्य में हर्बल और एरोमा टूरिज्म को बढ़ावा देने तथा गैर-प्रकाष्ठ वन उपज (एनटीएफपी) के सतत विकास की दिशा में बड़े कदम उठा रही है। इसी क्रम में मुख्य सचिव आनंद बर्धन की अध्यक्षता में सचिवालय सभागार में एक अहम समीक्षा बैठक आयोजित की गई, जिसमें इस बहुस्तरीय परियोजना की वर्तमान प्रगति और भविष्य की कार्ययोजना की विस्तार से समीक्षा की गई।

मुख्य सचिव ने बैठक में उपस्थित वन विभाग के अधिकारियों से जड़ी-बूटी आधारित विकास कार्यों की विस्तृत जानकारी ली और उन्हें निर्देश दिए कि प्रदेश में जड़ी-बूटी उत्पादन, संरक्षण, मूल्य संवर्धन और इससे जुड़े इको टूरिज्म को बढ़ावा देकर स्थानीय समुदायों को आत्मनिर्भर बनाया जाए। उन्होंने कहा कि इस परियोजना के माध्यम से स्थानीय युवाओं को रोजगार, आजीविका और प्रशिक्षण के नए अवसर उपलब्ध कराए जा सकते हैं। साथ ही यह स्थानीय अर्थव्यवस्था और ग्रामीण बुनियादी ढांचे को सुदृढ़ करने में भी सहायक सिद्ध होगा।

आनंद बर्धन ने वन विभाग को निर्देशित किया कि जड़ी-बूटी उत्पादन की प्रक्रिया को “क्लस्टर लेवल फेडरेशन” यानी स्थानीय वन पंचायतों के माध्यम से लागू किया जाए, जिससे जमीनी स्तर पर प्रभावी और समावेशी कार्यान्वयन सुनिश्चित हो सके। उन्होंने यह भी कहा कि जिन वन पंचायतों को इस प्रोजेक्ट के अंतर्गत पहले ही चिन्हित किया जा चुका है, वहां कार्यों की रफ्तार में तेजी लाई जाए और हर चरण की नियमित निगरानी हो।

बैठक में वन विभाग ने बताया कि हर्बल और एरोमा टूरिज्म प्रोजेक्ट तथा गैर-प्रकाष्ठ वन उपज विकास योजना एक दीर्घकालिक परियोजना है जिसकी कुल अवधि 10 वर्षों की है। यह दो चरणों में लागू की जा रही है—पहला चरण वर्ष 2024 से 2029 तक और दूसरा चरण 2028 से 2033 तक चलेगा। परियोजना की कुल लागत 628 करोड़ रुपये है।

इस महत्वाकांक्षी योजना को उत्तराखंड के 11 जिलों में लागू किया जाएगा, जिसमें जनपद हरिद्वार और उधम सिंह नगर को छोड़ दिया गया है। परियोजना के तहत राज्य की 5000 वन पंचायतों को लाभान्वित किया जाएगा। इसके अलावा 5000 हेक्टेयर वन पंचायत भूमि और 5000 हेक्टेयर निजी भूमि पर औषधीय पौधों का वनीकरण किया जाएगा, जिससे पारिस्थितिकी संतुलन के साथ-साथ किसानों और ग्रामीणों की आय में भी वृद्धि संभव हो सकेगी।

उत्तराखंड सरकार की इस पहल से स्पष्ट है कि वह राज्य को आयुर्वेदिक और प्राकृतिक चिकित्सा के वैश्विक केंद्र के रूप में स्थापित करने के लिए प्रतिबद्ध है। यह प्रोजेक्ट न केवल पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ावा देगा, बल्कि राज्य में एक नई हरित अर्थव्यवस्था के निर्माण की दिशा में भी मील का पत्थर साबित होगा।

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