Pirul Handicraft Uttarakhand: पिरूल से रोज़गार की राह, नैनीताल की भारती जीना ने चीड़ की पत्तियों से गढ़ी नई पहचान
Pirul Handicraft Uttarakhand: पिरूल से रोज़गार की राह, नैनीताल की भारती जीना ने चीड़ की पत्तियों से गढ़ी नई पहचान
नैनीताल जिले के रामगढ़ ब्लॉक के ध्वेती गांव की निवासी भारती जीना (भूमि) आज अपनी अनोखी सोच और मेहनत से स्वरोजगार की मिसाल बन चुकी हैं। उन्होंने जंगलों में गिरने वाली चीड़ की सूखी पत्तियों, जिन्हें आमतौर पर “पिरूल” कहा जाता है और जो अक्सर जंगलों में आग का कारण बनती हैं, को अपनी कला और नवाचार से रोजगार का साधन बना लिया है। भारती ने इन पत्तियों से आकर्षक टोकरी, फ्लावर पॉट और घरों की सजावट से जुड़ी अनेक वस्तुएं तैयार करनी शुरू कीं, जो आज स्थानीय बाजारों के साथ-साथ राज्य के विभिन्न हिस्सों में लोकप्रिय हो रही हैं।
भारती ने न केवल अपने लिए रोजगार का नया रास्ता बनाया, बल्कि अन्य ग्रामीण महिलाओं को भी इस कार्य से जोड़कर आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा दी है।

उनके प्रयासों से अब कई महिलाएं पिरूल हस्तशिल्प के माध्यम से स्वरोजगार प्राप्त कर रही हैं। उनकी यह पहल न केवल पर्यावरण संरक्षण की दिशा में अहम योगदान दे रही है, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी सशक्त बना रही है।
भारती जीना की कहानी यह साबित करती है कि यदि इच्छाशक्ति और नवाचार हो तो प्राकृतिक संसाधनों का सदुपयोग कर आर्थिक और सामाजिक परिवर्तन संभव है। उनकी “पिरूल हस्तशिल्पी कला” आज उत्तराखंड की एक नई पहचान बन चुकी है और यह दिखाती है कि प्रकृति की देन को सही दिशा देकर न केवल प्रदूषण और जंगलों की आग जैसी समस्याओं को रोका जा सकता है, बल्कि उससे आजीविका भी अर्जित की जा सकती है।