Isha Success Story: पहाड़ की बेटी ईशा ने पिरूल से बनाई नई राह, जंगल के कचरे को बनाया आजीविका का साधन

Isha Success Story: पहाड़ की बेटी ईशा ने पिरूल से बनाई नई राह, जंगल के कचरे को बनाया आजीविका का साधन
नैनीताल और अल्मोड़ा जिले की सीमा पर स्थित रामगढ़ ब्लॉक का छोटा सा खैरदा गांव भले ही शहरी चकाचौंध से दूर हो, लेकिन यहां की बेटी ईशा अपने अनोखे हुनर से पूरे प्रदेश में पहचान बना रही है। ईशा पिरूल से ऐसे आकर्षक और उपयोगी उत्पाद तैयार कर रही हैं, जो न केवल पर्यावरण के अनुकूल हैं, बल्कि आजीविका का मजबूत जरिया भी बन गए हैं।
ईशा द्वारा पिरूल से बनाई जाने वाली टोकरियां अपनी खूबसूरती, टिकाऊपन और पारंपरिक स्पर्श के लिए जानी जाती हैं। उन्होंने पहाड़ के दुश्मन माने जाने वाले पिरूल का सदुपयोग करते हुए उसे आज ग्रामीण अर्थव्यवस्था की नई ताकत में बदल दिया है। जंगलों में गिरने वाला पिरूल जहां पहले आग का कारण बनता था, वहीं अब ईशा जैसे युवाओं के लिए रोजगार और आत्मनिर्भरता का साधन बन रहा है।
ईशा ने इस यात्रा की शुरुआत तब की थी जब वह ल्वेशाल इंटर कॉलेज में नवमी की छात्रा थीं। उस समय उन्होंने पहली बार पिरूल से डलिया (टोकरियां) बनानी शुरू की थी। आज भी उन्होंने अपने इस हुनर को न केवल जारी रखा है बल्कि इसमें नवाचार भी जोड़े हैं। उनके बनाए उत्पाद स्थानीय बाजारों में खूब पसंद किए जा रहे हैं और धीरे-धीरे उनका प्रसार अन्य जिलों तक भी हो रहा है।
ईशा का यह प्रयास न केवल पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक सकारात्मक कदम है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि पहाड़ की युवा पीढ़ी परंपरा और प्रकृति दोनों से जुड़कर आत्मनिर्भरता की नई मिसाल कायम कर रही है। उनके कार्यों से प्रेरित होकर कई अन्य ग्रामीण महिलाएं भी इस कला को सीख रही हैं और पिरूल से नए उत्पाद तैयार करने में जुटी हैं।