Mahi Self Help Group: हरिद्वार की ‘माही स्वयं सहायता समूह’ बनी ग्रामीण महिलाओं की सफलता की मिसाल, ग्रामोत्थान परियोजना से डेयरी व्यवसाय में मिली नई उड़ान

Mahi Self Help Group: हरिद्वार की ‘माही स्वयं सहायता समूह’ बनी ग्रामीण महिलाओं की सफलता की मिसाल, ग्रामोत्थान परियोजना से डेयरी व्यवसाय में मिली नई उड़ान
उत्तराखंड के हरिद्वार जिले के नारसन ब्लॉक स्थित सिकंदरपुर मवाल गांव की महिलाएं अब आत्मनिर्भरता की नई मिसाल पेश कर रही हैं। ‘माही स्वयं सहायता समूह’ के नाम से संचालित इन महिलाओं का दुग्ध उत्पादन व्यवसाय आज ग्रामीण उद्यमिता के क्षेत्र में प्रेरणा का स्रोत बन चुका है। इस बदलाव का श्रेय ग्रामोत्थान (रीप) परियोजना, उत्तराखण्ड ग्राम्य विकास समिति और जिला प्रशासन हरिद्वार के समन्वित प्रयासों को जाता है।
मुख्य विकास अधिकारी हरिद्वार, श्रीमती आकांक्षा कोण्डे के नेतृत्व और दिशा-निर्देशों में जनपद के सभी विकासखंडों में अल्ट्रा पूवर सपोर्ट, फार्म और नॉन-फार्म एंटरप्राइजेज तथा CBO स्तर के उद्यमों को सशक्त करने के प्रयास किए जा रहे हैं। इसी पहल के अंतर्गत ‘माही स्वयं सहायता समूह’ का गठन हुआ, जिसने ग्रामीण महिलाओं की जीवन दिशा बदल दी।
पहले ये महिलाएं पारंपरिक ढंग से सीमित स्तर पर दुग्ध उत्पादन करती थीं, लेकिन आर्थिक तंगी के कारण जीवनयापन कठिन था। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM) की टीम ने इन्हें स्वयं सहायता समूह से जुड़ने के लिए प्रेरित किया। समूह बनने के बाद महिलाओं को प्रशिक्षण, सहयोग और वित्तीय सहायता के रूप में वह आधार मिला, जिसकी उन्हें लंबे समय से तलाश थी।
ग्रामोत्थान परियोजना के अंतर्गत ‘माही समूह’ को ‘श्री राधे कृष्णा सीएलएफ’, ग्राम मुंडलाना से जोड़ा गया और वर्ष 2023-24 में इंडियन ओवरसीज बैंक से तीन लाख रुपये का ऋण दिलवाया गया। इसके अलावा समूह ने स्वयं एक लाख रुपये और परियोजना से छह लाख रुपये का अंशदान जोड़ा। इस वित्तीय सहयोग ने उन्हें कार्यशील पूंजी और जरूरी संसाधन उपलब्ध कराए, जिससे उनका व्यवसाय बढ़ने लगा।
आज ‘माही स्वयं सहायता समूह’ 450 लीटर प्रतिदिन दूध उत्पादन कर रहा है, जिसमें से 350 लीटर आंचल डेयरी और अन्य स्थानीय डेयरियों को बेचा जा रहा है। शेष 100 लीटर दूध ‘माही डेयरी’ नामक मंगलौर स्थित उनके खुद के आउटलेट पर प्रयोग किया जा रहा है, जहां दही, लस्सी, पनीर, मावा, मक्खन जैसे उत्पाद बनाए जाते हैं और स्थानीय स्तर पर बेचे जाते हैं।
‘माही मिल्क बार’ से रोजाना पांच हजार रुपये से सात हजार रुपये तक की बिक्री होती है। दूध को पचास रुपये प्रति लीटर में खरीदा जाता है और पचपन रुपये प्रति लीटर पर बेचा जाता है, जिससे समूह को प्रतिदिन दो हजार दो सौ पचास रुपये और प्रतिमाह सड़सठ हजार पांच सौ रुपये का सकल लाभ होता है। आवश्यक खर्चों (परिवहन सात हजार पांच सौ रुपये, लेबर दस हजार रुपये, बिजली एक हजार रुपये) को घटाने के बाद, समूह को प्रतिमाह उनचास हजार रुपये का शुद्ध लाभ हो रहा है।
इस आर्थिक आत्मनिर्भरता ने न सिर्फ महिलाओं को सशक्त किया है, बल्कि उनके परिवारों को बेहतर जीवन, बच्चों को शिक्षा और बेहतर पोषण देने में भी सक्षम बनाया है। ‘माही स्वयं सहायता समूह’ अब ग्रामीण विकास का आदर्श उदाहरण बन गया है, जिसने यह साबित कर दिया कि सही मार्गदर्शन, योजना और सहयोग से महिलाएं किसी भी क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन सकती हैं।