Litchi Harvesting: मुजफ्फरपुर के किसान भोलानाथ झा की अनोखी खोज, ग्लूकोज तकनीक से लीची अब 5 दिन तक रहेगी ताजा

Litchi Harvesting: मुजफ्फरपुर के किसान भोलानाथ झा की अनोखी खोज, ग्लूकोज तकनीक से लीची अब 5 दिन तक रहेगी ताजा
देश की मिठास भरी लीची अब ज्यादा दिन तक ताजा रह सकेगी और यह संभव हुआ है बिहार के एक मेहनती और नवाचारी किसान भोलानाथ झा की खोज से। भोलानाथ झा, जिन्हें लीची उत्पादक “उद्यान रत्न” सम्मान मिल चुका है, ने एक नई तकनीक विकसित की है जिससे लीची अब पांच से सात दिन तक खराब नहीं होगी। इस अभिनव प्रयोग को राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र ने न केवल मान्यता दी है, बल्कि अब इस पर वैज्ञानिक स्तर पर विस्तृत शोध भी शुरू किया जा रहा है।
आमतौर पर लीची पेड़ से तोड़ने के 2-3 दिन में ही मुरझा जाती है, लेकिन किसान भोलानाथ झा की तकनीक इस प्राकृतिक कमजोरी को मात देती है। उन्होंने लीची के डंठल पर ग्लूकोज घोल में भीगी हुई रुई (कॉटन) बांध दी और फिर इसे विशेष “मॉडिफाइड एटमॉस्फेयर पैकिंग बैग” में पैक कर दिया। 15 मई को तुड़ाई के बाद लीचियों को इस तकनीक से पैक किया गया और 19 मई को पटना की कृषि प्रदर्शनी में जब पैक खोला गया तो लीचियां पूरी तरह ताजा और रसदार पाई गईं।
कुल तीन पैकेट बनाए गए, जिनमें से एक राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र को भेजा गया, जबकि दो भोलानाथ झा ने अपने पास रखे। वैज्ञानिकों ने इस तकनीक को संभावनाओं से भरपूर बताया है। अनुसंधान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. विकास दास ने कहा कि लीची एक नाजुक फल है जिसमें पानी की मात्रा अधिक होती है, इसी कारण यह जल्दी खराब हो जाती है। यदि कोई तकनीक इसे 5 दिन तक सुरक्षित रख सकती है, तो यह किसानों के लिए एक बड़ी उपलब्धि होगी।
अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिक अंकित कुमार ने बताया कि यह प्रयोग अभी शुरुआती तुड़ाई के मौसम में किया गया था, जब तापमान 30-35 डिग्री के बीच था। अब इस तकनीक का परीक्षण परिपक्व लीची और 40 डिग्री से ऊपर के तापमान पर भी किया जाएगा। अगर यह तकनीक ऐसे तापमान में भी कारगर रहती है, तो इससे किसानों को अपनी उपज दूरदराज के बाजारों में भेजने में काफी मदद मिलेगी।
इस तकनीक की सबसे खास बात यह है कि यह न केवल सस्ती और आसान है, बल्कि किसानों के लिए बेहद व्यावहारिक भी है। इससे ना केवल उपज की बर्बादी रुकेगी, बल्कि उन्हें बाजार में बेहतर दाम भी मिल सकेगा। आने वाले समय में यदि यह तकनीक व्यापक रूप से अपनाई जाती है, तो यह बिहार ही नहीं, पूरे देश के लीची उत्पादकों के लिए एक वरदान साबित होगी।