Haridwar Sanskrit Conference: मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने हरिद्वार में अंतरराष्ट्रीय संस्कृत सम्मेलन में उच्च स्तरीय आयोग की घोषणा की
Haridwar Sanskrit Conference: मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने हरिद्वार में अंतरराष्ट्रीय संस्कृत सम्मेलन में उच्च स्तरीय आयोग की घोषणा की
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी आज हरिद्वार में आयोजित अंतरराष्ट्रीय संस्कृत सम्मेलन में शामिल हुए। इस अवसर पर उन्होंने संस्कृत भाषा के उत्थान और विकास हेतु एक उच्च स्तरीय आयोग के गठन की घोषणा की। सम्मेलन में उपस्थित विद्वानों और अतिथियों को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि “भारतीय ज्ञान परंपरा: वैश्विक ज्ञान के विकास में संस्कृत का योगदान” जैसे विषय इस दो दिवसीय कार्यक्रम के माध्यम से भारतीय सभ्यता की गौरवमयी जड़ों को विश्व स्तर पर प्रस्तुत करता है। उन्होंने विश्वविद्यालय परिवार और आयोजकों का आभार व्यक्त किया और बताया कि भारत सहित विभिन्न देशों के विद्वान इस सम्मेलन में संस्कृत की समृद्ध ज्ञान-परंपरा पर गहन विचार-विमर्श करेंगे, जो वास्तव में प्रेरणादायी पहल है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि उनके लिए संस्कृत भाषा हमेशा से प्रेरणा का स्रोत रही है। उन्होंने अपने विद्यालयी शिक्षा काल में कक्षा 9 तक संस्कृत का अध्ययन किया और उस दौरान सीखे गए श्लोक, व्याकरण और भाषा की मधुरता आज भी उनके स्मरण में हैं। उन्होंने बताया कि संस्कृत केवल भाषा नहीं है, बल्कि यह संस्कृति, परंपरा, ज्ञान और विज्ञान का आधार है, जिसने प्राचीन मानव सभ्यताओं के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
उन्होंने यह भी बताया कि विश्व की कई भाषाओं की जड़ें संस्कृत में हैं। वेद, पुराण, उपनिषद, आयुर्वेद, योग, दर्शन, गणित, साहित्य, विज्ञान और खगोलशास्त्र जैसे सभी प्राचीन ग्रंथ संस्कृत में रचे गए हैं, जिन्होंने भारत की वैचारिक और सांस्कृतिक धरोहर को समृद्ध किया। मुख्यमंत्री ने 18वीं और 19वीं शताब्दी में यूरोपीय विद्वानों द्वारा संस्कृत साहित्य में बढ़ती रुचि का भी उल्लेख किया। उन्होंने तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला और वल्लभी विश्वविद्यालयों की भूमिका को भी याद किया, जहां से चरक, सुश्रुत, आर्यभट्ट, भास्कराचार्य, चाणक्य, ब्रह्मगुप्त और पाणिनि जैसे महान विद्वान निकले। उन्होंने कहा कि संस्कृत केवल विज्ञान की भाषा नहीं है, बल्कि नीति, मानवीय मूल्यों और वैश्विक बंधुत्व का संदेश देने वाली भाषा भी है।

मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश में संस्कृत भाषा के प्रचार-प्रसार हेतु चलाए जा रहे प्रयासों का भी उल्लेख किया। नई शिक्षा नीति में संस्कृत को आधुनिक और व्यवहारिक भाषा के रूप में स्थापित करने पर विशेष जोर दिया गया है। ई-संस्कृत शिक्षण प्लेटफॉर्म, मोबाइल एप्स और ऑनलाइन साहित्य उपलब्धता जैसी पहलें नई पीढ़ी तक संस्कृत को सरल रूप में पहुंचा रही हैं। कर्नाटक के मट्टूर गाँव का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि संस्कृत आज भी दैनिक जीवन की भाषा बन सकती है। केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में लोकसभा की कार्यवाही के संस्कृत अनुवाद की पहल को भी इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम बताया।
मुख्यमंत्री ने राज्य में संस्कृत को द्वितीय राजभाषा का दर्जा देने का भी महत्व बताया और कहा कि राज्य सरकार विद्यालयों में संस्कृत शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए सतत प्रयासरत है। उन्होंने गार्गी संस्कृत बालिका छात्रवृत्ति योजना, डॉ. भीमराव अंबेडकर एससी/एसटी छात्रवृत्ति योजना और संस्कृत छात्र प्रतिभा सम्मान योजना सहित कई योजनाओं का विवरण दिया। इन योजनाओं के माध्यम से छात्राओं और विद्यार्थियों को आर्थिक सहायता और पुरस्कार प्रदान किया जा रहा है।

उन्होंने यह भी बताया कि उत्तराखंड संस्कृत अकादमी द्वारा अखिल भारतीय शोध सम्मेलन, वेद सम्मेलन, ज्योतिष सम्मेलन, संस्कृत शिक्षक कौशल विकास कार्यशालाएँ और छात्र प्रतियोगिताओं का नियमित आयोजन किया जा रहा है। राज्य सरकार ने प्रत्येक जनपद में आदर्श संस्कृत ग्राम स्थापित करने का संकल्प लिया है, जिससे देववाणी संस्कृत को जन-जन तक पहुंचाने के प्रयास और मजबूत होंगे। साथ ही विद्यार्थियों के लिए सरकारी सहायता, शोध कार्यों में सहयोग और रोजगार के अवसर बढ़ाने पर भी कार्य किया जा रहा है।
सम्मेलन में पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल, विधायक आदेश चौहान, प्रदीप बत्रा, प्रदेश उपाध्यक्ष स्वामी यतीश्वरानंद, विदेश सचिव (भारत सरकार) मीना मल्होत्रा, सचिव संस्कृत उत्तराखंड दीपक गैरोला, संस्कृत विश्वविद्यालय कुलपति दिनेश चंद्र शास्त्री, जिलाधिकारी मयूर दीक्षित, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक प्रमेन्द्र सिंह डोभाल और विभिन्न देशों से आए विद्वान एवं विद्यार्थी उपस्थित रहे।