Haridwar Ardh Kumbh 2027: तिथियां घोषित, 14 जनवरी से 20 अप्रैल तक 97 दिनों का भव्य आयोजन
Haridwar Ardh Kumbh 2027: तिथियां घोषित, 14 जनवरी से 20 अप्रैल तक 97 दिनों का भव्य आयोजन
देहरादून/हरिद्वार: उत्तराखंड सरकार ने 2027 में हरिद्वार में होने वाले अर्धकुंभ के आयोजन की आधिकारिक तिथियों की घोषणा कर दी है। यह पावन महाकुंभ 14 जनवरी 2027 से प्रारंभ होकर 20 अप्रैल 2027 तक कुल 97 दिनों तक चलेगा। लंबे समय से तिथियों को लेकर बनी असमंजस की स्थिति बुधवार को समाप्त हुई, जब मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अखाड़ा परिषद व संत समाज के प्रतिनिधियों के साथ महत्वपूर्ण बैठक के बाद तिथियों को अंतिम स्वीकृति दी।
मुख्यमंत्री ने कहा कि आगामी अर्धकुंभ को दिव्य और भव्य स्वरूप देने के लिए राज्य सरकार पूर्ण गंभीरता के साथ तैयारियों में जुटी है। उन्होंने कहा कि तिथियों की आधिकारिक घोषणा के साथ ही व्यवस्थाओं को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया तेज हो गई है ताकि देश और दुनिया से आने वाले करोड़ों श्रद्धालुओं को सहज, सुरक्षित और सुगम अनुभव मिल सके।
अर्धकुंभ 2027 की सबसे विशेष बात यह है कि इसमें कुल 10 प्रमुख स्नान पर्वों का आयोजन होगा। इनमें पहली बार चार शाही अमृत स्नान शामिल किए जा रहे हैं, जो इस अर्धकुंभ को ऐतिहासिक और अत्यंत विशिष्ट बनाते हैं। शाही स्नान की व्यवस्था और अखाड़ों की पारंपरिक मर्यादा के संरक्षण हेतु प्रशासन ने समन्वित और सुदृढ़ तैयारी की घोषणा की है।
अखाड़ों की सर्वसम्मति और समर्थन
महत्वपूर्ण बैठक में सभी 13 अखाड़ों के प्रतिनिधि उपस्थित रहे। प्रस्तावित तिथियों और व्यवस्थाओं पर सभी ने सर्वसम्मति से सहमति दी। संत समाज की ओर से कहा गया कि अर्धकुंभ 2027 को भव्यता और दिव्यता के साथ कुंभ के बराबर स्तर पर आयोजित किया जाएगा। अखाड़ा प्रतिनिधियों ने प्रशासन और सरकार की तैयारियों की दिशा को सराहा तथा कहा कि यह आयोजन धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक दृष्टि से नई मिसाल कायम करेगा।
प्रशासनिक तैयारियां तेज
अर्धकुंभ के दौरान करोड़ों श्रद्धालुओं की संभावित भीड़ को ध्यान में रखते हुए प्रशासन ने विस्तृत योजना बनाई है। इसमें नए अस्थायी मार्गों का निर्माण, पार्किंग स्थलों की संख्या बढ़ाना, स्नान पर्वों के लिए विशेष सुरक्षा व्यवस्था, आपदा प्रतिक्रिया प्रणाली को मजबूत करना, घाटों की क्षमता में वृद्धि एवं स्मार्ट ट्रैफिक प्रबंधन शामिल है। उद्देश्य है कि श्रद्धालु बिना किसी असुविधा के दर्शन और स्नान कर सकें।
शाही अमृत स्नान का गौरवशाली इतिहास
शाही अमृत स्नान साधु-संतों की गरिमा, परंपरा और सम्मान का प्रतीक है। ऐतिहासिक रूप से इसका आरंभ 14वीं से 16वीं सदी के बीच माना जाता है, जब अखाड़ों के संतों ने धर्म और समाज की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके सम्मान में उन्हें स्नान पर्वों पर सबसे पहले स्नान का अधिकार दिया गया, जो आज भी अखिल भारतीय स्तर पर अत्यंत प्रतिष्ठित माना जाता है।
सरकार का लक्ष्य — दिव्य, भव्य और यादगार अर्धकुंभ
मुख्यमंत्री धामी ने कहा कि अर्धकुंभ को धार्मिक और आध्यात्मिक आयोजन के साथ-साथ सांस्कृतिक रूप से भी समृद्ध बनाने के लिए कार्यक्रमों की विस्तृत श्रृंखला तैयार की जाएगी। मकर संक्रांति से आरंभ होने वाला यह मेला देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए अविस्मरणीय अनुभव बन सके, इसके लिए सरकार हर स्तर पर प्रतिबद्ध है।