Dharali Glacier Monitoring: धराली और ऊंचाई वाले क्षेत्रों में ग्लेशियर और झीलों की निगरानी के निर्देश

Dharali Glacier Monitoring: धराली और ऊंचाई वाले क्षेत्रों में ग्लेशियर और झीलों की निगरानी के निर्देश
धराली (उत्तरकाशी) आपदा के बाद मुख्य सचिव आनंद बर्द्धन ने उत्तराखंड राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद के महानिदेशक प्रोफेसर दुर्गेश पंत को निर्देश दिया है कि धराली के ऊपर स्थित अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में मौजूद ग्लेशियर और ग्लेशियर लेक का तत्काल विश्लेषण कर वर्तमान स्थिति की विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की जाए। उन्होंने कहा कि ग्लेशियर के पिघलने से बनने वाली झीलों और उनसे संभावित खतरों का त्वरित आंकलन जरूरी है, ताकि समय रहते एहतियाती कदम उठाए जा सकें। इसके साथ ही उन्होंने पूरे प्रदेश के ऊंचाई वाले इलाकों को भी इस अध्ययन में शामिल करने के निर्देश दिए।
मुख्य सचिव ने विशेष रूप से धराली और ऋषिगंगा जैसे संवेदनशील क्षेत्रों को प्राथमिकता पर लेते हुए इनके भू-वैज्ञानिक और जल-वैज्ञानिक विश्लेषण की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि ऐसी रिपोर्टें सरकार को समय रहते तैयारी करने और किसी भी संभावित आपदा से जान-माल के नुकसान को रोकने में मददगार साबित होंगी। साथ ही उन्होंने निर्देश दिया कि राज्यभर में ऐसे सभी ऊंचाई वाले स्थानों की पहचान की जाए, जहां नई झील बनने या मौजूदा झील के विस्तार की आशंका हो।
मुख्य सचिव ने इस निरंतर निगरानी प्रक्रिया के लिए उत्तराखंड स्पेस एप्लीकेशन सेंटर (यू-सैक) को नोडल एजेंसी घोषित किया और कहा कि इस संस्था को और मजबूत किया जाएगा ताकि यह कार्य सुचारू रूप से जारी रहे। उन्होंने स्पष्ट किया कि नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर (एनआरएससी), इंस्टीट्यूट ऑफ रिमोट सेंसिंग सैटेलाइट (आईआरएसएस) और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) से हर संभव तकनीकी सहयोग और सामंजस्य यू-सैक के माध्यम से ही किया जाएगा।
उन्होंने झीलों की सतत निगरानी के लिए सेंसर लगाने के कार्य में तेजी लाने के निर्देश भी दिए, साथ ही राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान (एनआईएच) से भी सहयोग लेने की बात कही। बैठक में पुलिस महानिदेशक दीपम सेठ, प्रमुख सचिव आर. के. सुधांशु, आर. मीनाक्षी सुन्दरम, सचिव शैलेश बगौली, नितेश कुमार झा, सचिन कुर्वे, डॉ. पंकज कुमार पाण्डेय, युगल किशोर पंत और विनोद कुमार सुमन उपस्थित थे। इसके अलावा गढ़वाल आयुक्त विनय शंकर पाण्डेय वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से जुड़े।
यह कदम राज्य में आपदा प्रबंधन क्षमता को और मजबूत करेगा तथा भविष्य में ग्लेशियर या झील से संबंधित आपदाओं के जोखिम को काफी हद तक कम करने में मददगार होगा।