Dehradun: मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने वित्त आयोग के समक्ष रखा उत्तराखंड का पक्ष, पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति और विशेष अनुदानों की मांग

Dehradun: मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने वित्त आयोग के समक्ष रखा उत्तराखंड का पक्ष, पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति और विशेष अनुदानों की मांग
देहरादून: उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सोमवार को सचिवालय में आयोजित एक अहम बैठक में 16वें वित्त आयोग के अध्यक्ष डॉ. अरविंद पनगढ़िया और आयोग के अन्य सदस्यों के समक्ष राज्य की वित्तीय स्थितियों, संरचनात्मक चुनौतियों और विकास आवश्यकताओं को मजबूती से प्रस्तुत किया। मुख्यमंत्री ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि उत्तराखंड की भौगोलिक और पारिस्थितिकीय विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार को “इनवॉयरमेंटल फेडरललिज्म” की भावना के अनुरूप राज्य को उपयुक्त क्षतिपूर्ति और वित्तीय सहायता देनी चाहिए।
मुख्यमंत्री धामी ने सुझाव दिया कि कर हस्तांतरण में वन आच्छादन के भार को वर्तमान व्यवस्था से बढ़ाकर कम से कम 20 प्रतिशत तक किया जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि उत्तराखंड जैसे राज्यों के लिए, जो 70 प्रतिशत से अधिक वन क्षेत्र से आच्छादित हैं, विशेष अनुदानों की व्यवस्था की जानी चाहिए ताकि वनों के प्रबंधन और संरक्षण के लिए अतिरिक्त संसाधन उपलब्ध हो सकें।
मुख्यमंत्री ने कहा कि उत्तराखंड ने अपनी स्थापना के 25 वर्षों में वित्तीय अनुशासन और विकास के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है। राज्य का बजट आकार एक लाख करोड़ रुपये के पार चला गया है। नीति आयोग की 2023-24 की एसडीजी रिपोर्ट में उत्तराखंड ने देश के अग्रणी राज्यों में स्थान पाया है। राज्य की बेरोजगारी दर में 4.4 प्रतिशत की कमी आई है और प्रति व्यक्ति आय में 11.33 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है, जो राष्ट्रीय औसत से अधिक है।
धामी ने आयोग को बताया कि राज्य में वनों के संरक्षण के चलते विकास गतिविधियों पर रोक लगती है, जिससे “ईको सर्विस कॉस्ट” जैसी व्यावहारिक दिक्कतें आती हैं। इसके अलावा, 2010 में समाप्त हुए इंडस्ट्रियल कन्सेसनल पैकेज के बाद राज्य को लोकेशनल डिसएडवांटेज से उबरने में कठिनाई हो रही है। पर्वतीय क्षेत्रों में शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के लिए निजी क्षेत्र की सीमित भागीदारी के कारण राज्य सरकार को विशेष बजटीय प्रावधान करने पड़ते हैं।
मुख्यमंत्री ने यह भी बताया कि स्मार्ट क्लास, क्लस्टर स्कूल, दूरस्थ शिक्षा, टेली-मेडिसिन, विशेष एंबुलेंस सेवा और विशेषज्ञ चिकित्सकों की तैनाती के माध्यम से राज्य में बुनियादी सेवाओं को सुदृढ़ करने के प्रयास किए जा रहे हैं।
धामी ने बताया कि प्राकृतिक आपदाओं के प्रति संवेदनशील उत्तराखंड को लगातार आपदा राहत और पुनर्वास कार्यों के लिए केंद्र से आर्थिक सहयोग की आवश्यकता होती है। जल स्रोतों के संरक्षण हेतु ‘भागीरथ एप’ के माध्यम से आम नागरिकों की सहभागिता सुनिश्चित करने की दिशा में कार्य हो रहा है। मुख्यमंत्री ने इस दिशा में भी विशेष अनुदान की मांग की।
गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित किए जाने के बाद लागू नियमों के कारण राज्य में जल विद्युत परियोजनाओं पर रोक लग गई है, जिससे राज्य को राजस्व और रोजगार दोनों में भारी क्षति हो रही है। मुख्यमंत्री ने ऐसी प्रभावित परियोजनाओं की क्षतिपूर्ति और स्पष्ट मैकेनिज्म निर्धारित किए जाने की मांग रखी।
मुख्यमंत्री ने तीर्थ स्थलों पर बढ़ती ‘फ्लोटिंग पापुलेशन’ का भी जिक्र किया, जिससे परिवहन, पेयजल, कचरा प्रबंधन जैसी आवश्यक सेवाओं पर अतिरिक्त दबाव बनता है। उन्होंने कहा कि विषम भौगोलिक परिस्थितियों के कारण राज्य में इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास की लागत अत्यधिक होती है, जिसे ध्यान में रखकर विशेष सहायता दी जानी चाहिए।
उन्होंने यह भी कहा कि कर हस्तांतरण के फार्मूले में “राजकोषीय अनुशासन” को भी एक प्रमुख मानदंड के रूप में शामिल किया जाना चाहिए। साथ ही “रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट” की जगह “रेवेन्यू नीड ग्रांट” लागू करना अधिक युक्तिसंगत होगा।
डॉ. अरविंद पनगढ़िया ने उत्तराखंड सरकार की प्रस्तुतियों की सराहना करते हुए कहा कि राज्य ने हर क्षेत्र में प्रभावशाली प्रगति की है और वित्त आयोग राज्य की विशेष परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए व्यापक विचार करेगा। आयोग 31 अक्टूबर 2025 तक अपनी रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंपेगा।
बैठक में राज्य के वरिष्ठ अधिकारी, मुख्य सचिव आनंद बर्द्धन, प्रमुख सचिव आर.के. सुधांशु, सचिव दिलीप जावलकर, एल. फैनई, आर. मीनाक्षी सुंदरम, और अन्य वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित रहे।