GarhBhoj Uttarakhand: उत्तराखंड में पहाड़ी भोजन को नया जीवन, गढ़भोज अभियान से युवा जुड़ रहे पारंपरिक खाने से
GarhBhoj Uttarakhand: उत्तराखंड में पहाड़ी भोजन को नया जीवन, गढ़भोज अभियान से युवा जुड़ रहे पारंपरिक खाने से
देहरादून। उत्तराखंड के पारंपरिक पहाड़ी भोजन को नई पीढ़ी तक पहुंचाने और इसे मेनस्ट्रीम में लाने के लिए द्वारिका प्रसाद सेमवाल ने गढ़भोज अभियान शुरू किया है। इस अभियान के तहत पहाड़ी फसलें जैसे कोदा, झंगोरा और कंडाली से बने व्यंजन स्कूलों, सामूहिक कार्यक्रमों, विवाह समारोह और घरों तक पहुंचाए जा रहे हैं। इसका मुख्य उद्देश्य युवाओं को फास्ट फूड की बजाय पारंपरिक खानपान की ओर आकर्षित करना और स्वास्थ्य तथा संस्कृति का संतुलन बनाए रखना है।
द्वारिका प्रसाद सेमवाल बताते हैं कि उत्तराखंड का पारंपरिक भोजन केवल पेट भरने का माध्यम नहीं है, बल्कि यह स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक है। यह भोजन प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने, पाचन तंत्र को मजबूत करने और संपूर्ण स्वास्थ्य बनाए रखने में मदद करता है। साल 2000 से हिमालय पर्यावरण जड़ी-बूटी एग्रो संस्थान के सहयोग से चल रहे इस अभियान ने राज्य के बच्चों और युवाओं को पारंपरिक भोजन की महत्ता से अवगत कराया है।
गढ़भोज अभियान के तहत राज्य के स्कूलों में हफ्ते में एक बार मिड डे मील में पारंपरिक पहाड़ी भोजन परोसा जाता है। इसके साथ ही सामूहिक आयोजनों जैसे शादी-ब्याह, प्रशासनिक बैठकें और सामाजिक समारोहों में भी इस भोजन को बढ़ावा दिया जा रहा है। अभियान से पहाड़ी फसलों और व्यंजनों की लोकप्रियता बढ़ी है और अब लोग अपने घरों में कोदे, झंगोरे और कांडली से बने व्यंजन बच्चों को खिलाने लगे हैं।
द्वारिका प्रसाद सेमवाल कहते हैं कि पहाड़ी फसलें न केवल खाद्य सुरक्षा और स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण हैं, बल्कि यह पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन को बनाए रखने में भी मदद करती हैं। पहले ये फसलें हाशिए पर चली गई थीं, लेकिन गढ़भोज अभियान के प्रयासों और सरकार की सहयोगी नीतियों के चलते अब यह थालियों का हिस्सा बनने लगी हैं। संस्थान द्वारा आयोजित गढ़भोज दिवस में स्कूली बच्चों को पहाड़ी व्यंजन परोसने की मुहिम भी चल रही है, जिससे बच्चों में पारंपरिक खानपान के प्रति जागरूकता बढ़ रही है।
सेमवाल का मानना है कि गढ़भोज अभियान के लंबे संघर्ष और राज्य सरकार की कोशिशों से अब फसलों के उत्पादन को बढ़ावा मिल रहा है। उन्होंने कहा कि पहाड़ी भोजन की बेहतर बाजार व्यवस्था पर काम जारी है और इसे सबको मिलकर और बेहतर बनाने की जरूरत है। उनका कहना है कि राज्यवासियों को पारंपरिक फसलों और गढ़भोज की खूबियों के लिए इसे एक दिन उत्सव के रूप में मनाना चाहिए, ताकि यह संस्कृति और स्वास्थ्य का प्रतीक बनकर नई पीढ़ी तक पहुंचे।