• August 20, 2025

Uttarakhand Jal Sankat: उत्तराखण्ड में जल संकट से निपटने की दिशा में ऐतिहासिक पहल, गैरसैंण से शुरू हुई डायरेक्ट इंजेक्शन जल स्रोत पुनर्भरण योजना

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भराड़ीसैंण (गैरसैंण): उत्तराखण्ड में जल संकट की चुनौती का स्थायी समाधान खोजने के लिए आज विधानसभा भवन परिसर में एक ऐतिहासिक कदम उठाया गया। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खण्डूड़ी भूषण ने स्वामी राम विश्वविद्यालय, जौलीग्रांट के सहयोग से “डायरेक्ट इंजेक्शन जल स्रोत पुनर्भरण योजना” का शुभारंभ किया। यह योजना भूजल स्तर को पुनर्जीवित करने और सूख चुके हैंडपंपों को फिर से सक्रिय बनाने की दिशा में राज्य का अभिनव प्रयास है।

इस अवसर पर “वाइब्रेंट बर्ड ऑफ कोटद्वार” नामक फोटोग्राफ संग्रह का विमोचन भी किया गया, जिसमें कोटद्वार क्षेत्र की समृद्ध जैव विविधता को दर्शाया गया है।

मुख्यमंत्री धामी ने कहा कि राज्य सरकार तकनीकी नवाचारों को अपनाकर जल संकट से निपटने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा, “डायरेक्ट इंजेक्शन जल स्रोत पुनर्भरण योजना न केवल भूजल स्तर को बढ़ाएगी, बल्कि यह जल संरक्षण और जल प्रबंधन की दिशा में उत्तराखण्ड के लिए मील का पत्थर साबित होगी।”

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विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खण्डूड़ी भूषण ने इस अवसर पर कहा कि जल संरक्षण केवल पर्यावरणीय आवश्यकता भर नहीं है, बल्कि उत्तराखण्ड के भविष्य की जीवनरेखा है। उन्होंने जोर देकर कहा कि भूजल पुनर्भरण ही भविष्य की जल सुरक्षा का मजबूत आधार बनेगा और यह पहल पूरे प्रदेश के लिए स्थायी जल प्रबंधन का मॉडल बनेगी।

कार्यक्रम में जानकारी दी गई कि 8 जुलाई 2025 को अंतर्राष्ट्रीय संसदीय अध्ययन, शोध एवं प्रशिक्षण संस्थान, भराड़ीसैंण और स्वामी राम हिमालयन विश्वविद्यालय, जौलीग्रांट के बीच एक एमओयू हुआ था। इसी एमओयू के तहत इस तकनीक को प्रदेश में लागू किया जा रहा है। योजना के पहले चरण में ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण और चौखुटिया विकासखंडों के 20 निष्क्रिय हैंडपंपों को उपचारित वर्षा जल से पुनर्भरण कर फिर से क्रियाशील बनाया जाएगा।

स्वामी राम विश्वविद्यालय की तकनीकी टीम—प्रोफेसर एच.पी. उनियाल, नितेश कौशिक, सुजीत थपलियाल, राजकुमार वर्मा, अतुल उनियाल, अभिषेक उनियाल और शक्ति भट्ट—ने योजना की तकनीकी प्रक्रिया पर प्रस्तुति दी। उन्होंने विस्तार से बताया कि किस प्रकार वर्षा जल को फिल्टर और ट्रीट कर सीधे भूजल भंडार तक इंजेक्ट किया जाता है, जिससे सूखे हैंडपंप पुनः जीवंत हो जाते हैं और ग्रामीणों की पेयजल समस्या का समाधान होता है।

कार्यक्रम के दौरान विश्वविद्यालय द्वारा निर्मित एक डॉक्यूमेंट्री भी प्रदर्शित की गई, जिसमें गैरसैंण क्षेत्र के गांवों में इस तकनीक के सफल प्रयोग और उसके परिणामों को दर्शाया गया।

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