Drumstick: सहजन: पोषण, परागण और पर्यावरण संरक्षण का अद्भुत वरदान

Drumstick: सहजन: पोषण, परागण और पर्यावरण संरक्षण का अद्भुत वरदान
लखनऊ, 25 मई — सहजन, जिसे वैज्ञानिक भाषा में मोरिंगा कहा जाता है, अब केवल एक औषधीय पौधा नहीं रहा, बल्कि यह मानव स्वास्थ्य, पशुपालन, खेती और पर्यावरण संरक्षण का एक समग्र समाधान बन चुका है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ वर्षों से इसके गुणों के मुरीद हैं और उत्तर प्रदेश में हरियाली बढ़ाने से लेकर कुपोषण मिटाने और किसान हितों को मजबूत करने तक, उन्होंने सहजन को विशेष प्राथमिकता दी है।
सहजन की विशिष्टता इसमें छिपे पोषण तत्वों में है। इसकी पत्तियों, फलियों और फूलों में अद्भुत औषधीय गुण मौजूद हैं जो लगभग 300 बीमारियों की रोकथाम में मदद करते हैं। वैज्ञानिक शोधों के अनुसार सहजन में 92 प्रकार के विटामिन, 46 एंटी ऑक्सीडेंट, 36 प्राकृतिक दर्द निवारक और 18 एमिनो एसिड पाए जाते हैं। इसकी तुलना करें तो इसमें संतरे से सात गुना ज्यादा विटामिन C, गाजर से चार गुना ज्यादा विटामिन A, दूध से चार गुना कैल्शियम, केले से तीन गुना पोटैशियम और दही से तीन गुना ज्यादा प्रोटीन होता है।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2019-20 के अनुसार भारत में 32% बच्चे अंडरवेट और 67% बच्चे एनीमिया से पीड़ित हैं। ऐसे में सहजन जैसे पौष्टिक तत्वों से भरपूर पौधे बच्चों, किशोरियों, गर्भवती महिलाओं और बुजुर्गों के लिए जीवनदायी साबित हो सकते हैं। यही वजह है कि केंद्र सरकार ने भी इसे प्रधानमंत्री पोषण योजना में शामिल करने की सिफारिश की है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सहजन को न केवल हरित क्रांति का आधार बनाया है, बल्कि इसका उपयोग ग्रामीण आजीविका में भी करने की दिशा में काम किया है। उन्होंने प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री आवास योजना के लाभार्थियों, आकांक्षात्मक जिलों के हर परिवार और जीरो पावर्टी कैटेगरी के लोगों को सहजन के पौधे वितरित करने का निर्देश दिया है। उनके मुताबिक सहजन “सोने पर सुहागा” की तर्ज पर पौधरोपण, पोषण और पर्यावरण—तीनों में सहायक है।
कृषि में भी सहजन की भूमिका विशेष है। इसके फूल ऐसे समय खिलते हैं जब अन्य पेड़-पौधों में फूल नहीं होते। इससे मधुमक्खियों के लिए यह मुख्य स्रोत बनता है और परागण में मदद करता है, जो वैश्विक खाद्य उत्पादन में 5-8% तक योगदान करता है—यानी करीब 235 से 577 अरब डॉलर का। यही नहीं, सहजन की पत्तियों से वर्मी कम्पोस्ट और मधुमक्खी पालन जैसे कार्यों की गुणवत्ता भी कई गुना बढ़ जाती है।
पशुपालन में सहजन की सूखी या हरी पत्तियों को चारे के रूप में देने से दूध उत्पादन डेढ़ गुना और पशु के वजन में एक तिहाई की वृद्धि दर्ज की गई है। वहीं इसकी पत्तियों का रस यदि पानी में मिलाकर फसल पर छिड़का जाए तो उपज में सवाया यानी डेढ़ गुना से भी अधिक इज़ाफा होता है।
तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित PKM-1 और PKM-2 सहजन की दो लोकप्रिय प्रजातियां हैं, जो जलवायु परिवर्तन के अनुकूल हैं और कम भूमि एवं संसाधनों में भी भरपूर उत्पादन देती हैं। यही कारण है कि दक्षिण भारत में इसकी व्यापक खेती होती है और फलियों से लेकर पत्तियों तक का उपयोग भोजन, औषधि और व्यापार में होता है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का सहजन से लगाव नया नहीं है। जब वह गोरखपुर से सांसद थे, तब से ही वे इसके लाभों को समझते थे और जनहित में इसके प्रचार-प्रसार में जुटे थे। उनके नेतृत्व में उत्तर प्रदेश सरकार ने न केवल सहजन को जन-आंदोलन का रूप दिया, बल्कि इसे कुपोषण के खिलाफ एक कारगर हथियार बना दिया।
आज सहजन केवल एक पौधा नहीं बल्कि एक ऐसा ‘जीवित समाधान’ है, जो स्वास्थ्य, कृषि, पर्यावरण और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को एक साथ संबल प्रदान करता है। योगी सरकार के प्रयासों और केंद्र की योजनाओं के साथ मिलकर यह संभव है कि सहजन भारत को पोषण और पर्यावरणीय संतुलन की दिशा में नई राह दिखाएगा।