MARCHA Dhan: एक किसान की दूरदृष्टि ने बिहार के ‘मरचा धान’ को बनाया अंतरराष्ट्रीय स्टार, कीमत हुई चार गुना बढ़ी
MARCHA Dhan: एक किसान की दूरदृष्टि ने बिहार के ‘मरचा धान’ को बनाया अंतरराष्ट्रीय स्टार, कीमत हुई चार गुना बढ़ी
बिहार के पश्चिम चंपारण की मिट्टी में उगने वाला पारंपरिक ‘मरचा धान’ आज अंतरराष्ट्रीय पहचान बना चुका है। कभी अनदेखा और पुरानी किस्म समझा जाने वाला यह धान अब प्रीमियम कैटेगरी का हिस्सा है और इसकी कीमत साधारण चूड़े की तुलना में चार गुना तक बढ़ गई है। इस सफलता के पीछे हैं समहौता गांव के किसान आनंद सिंह, जिनकी सोच, लगन और दूरदृष्टि ने इस धान को नई ऊंचाइयों तक पहुँचा दिया। आनंद सिंह ने वह मौका देखा जहाँ दूसरे किसान पारंपरिक फसल को कमाई का साधन नहीं मानकर छोड़ रहे थे। उन्होंने साबित किया कि जब किसी पुरानी फसल को सही तकनीक, देखभाल और ब्रांडिंग मिले, तो वह किसानों की किस्मत बदल सकती है। मरचा धान की पहचान उसके अनोखे दानों से होती है, जो काली मिर्च जैसे दिखते हैं, इसलिए इसे “मरचा” कहा जाता है। इसकी सबसे खास बात है इससे बनने वाला अत्यंत सुगंधित और मुलायम चूड़ा, जो न केवल बिहार बल्कि देशभर में लोकप्रिय हो रहा है। यही चूड़ा अब अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी रुचि का विषय बन चुका है।
आज भारत सरकार ने इसे GI टैग देकर प्रमाणित कर दिया है कि इसका उत्पादन केवल इसी क्षेत्र में हो सकता है और कोई भी कंपनी इसके नाम पर नकली उत्पाद नहीं बेच सकती। आनंद सिंह ने 20 वर्षों के अनुभव के साथ मरचा धान की वास्तविक क्षमता को पहचाना। जब किसान बड़ी उपज देने वाली हाइब्रिड किस्मों की ओर जा रहे थे, तब उन्होंने इस पारंपरिक किस्म को नए तरीके से उगाकर इसे प्रीमियम उत्पाद में बदल दिया। मरचा धान की औसत पैदावार 8 से 10 क्विंटल प्रति एकड़ रहती है, लेकिन इसकी बाजार कीमत किसानों को शानदार लाभ दिलाती है। जहां साधारण चूड़ा 40-50 रुपये किलो बिकता है, वहीं मरचा धान का चूड़ा स्थानीय बाजार में 200 रुपये प्रति किलो तक मिलता है। यह मूल्य वृद्धि किसानों की आमदनी चार गुना तक बढ़ा रही है। वर्तमान में पश्चिम चंपारण में लगभग 400 एकड़ क्षेत्र में इसकी खेती हो रही है, लेकिन इसकी बढ़ती मांग के कारण अधिक किसान इसकी खेती की ओर आकर्षित हो रहे हैं। इस धान का चूड़ा सामान्य तापमान पर भी 4 से 6 महीनों तक सुरक्षित रहता है, जिससे व्यापारी और किसान इसे बेहतर कीमत पर बेच पाते हैं।
हालांकि मरचा धान की लोकप्रियता के साथ चुनौतियाँ भी सामने आई हैं। इस किस्म का पौधा मजबूत नहीं होता और तेज हवा या बारिश में गिर जाता है। इस समस्या के कारण किसान कृषि वैज्ञानिकों की सहायता से ऐसी उन्नत किस्म विकसित करने की उम्मीद कर रहे हैं, जिसमें तना मजबूत हो और पौधा गिरने की संभावना कम हो। मगर सबसे बड़ी चुनौती है कि नई किस्म विकसित करते समय इसकी सुगंध, स्वाद और चूड़े की गुणवत्ता बिल्कुल भी न बदले। किसान समुदाय का मानना है कि यदि वैज्ञानिक रूप से सुधार किए जाएं, तो मरचा धान को विश्व स्तर पर और भी बड़ी पहचान मिल सकती है। बिहार का यह धान अब सिर्फ एक फसल नहीं, बल्कि किसानों की कमाई, परंपरा और गौरव का प्रतीक बन चुका है। किसान आनंद सिंह की यह कहानी पूरे देश के किसानों के लिए प्रेरणा है कि पारंपरिक फसलों में भी अपार संभावनाएँ छिपी होती हैं, बस उन्हें पहचानने की जरूरत होती है।